गतांक से आगे…
साथियों से माफी चाहता हूँ, क्योंकि पिछले कुछ दिनो से मै काफी व्यस्त था। लेख लिखकर रखा हुआ था लेकिन कुछ फाइन ट्यून करने के चक्कर में मसला अटका हुआ था। इधर कुछ दिनो से हिन्दी चिट्ठाकार जगत मे कुछ मुद्दों ने भी मूड अपसेट कर रखा था, नए लोगों को पता ही नही, कि वे जोश मे आकर क्या कुछ बोल जाते है, कभी कभी किसी के दिल को ठेस भी पहुँच सकती है ये इनको पता नही। लेकिन समझाया उन्हे जाए जो समझना चाहें। खैर छोड़िए इन सब बातों को, आइए अतीत की बातें करते है, वहीं से शुरु करते है जहाँ पिछली बातें अधूरी छोड़ी थी।
अभी तक सारा वार्तालाप या तो इमेंल द्वारा चिट्ठाकार पर या अक्षरग्राम चौपाल पर होता था। हमें एक चर्चा के मंच की सख्त जरुरत दिखायी दे रही थी (शायद मेंरे इस कथन से बाकी लोग सहमत ना हों) इसलिए परिचर्चा के विचार ने जन्म लिया। परिचर्चा में काफी लोगो ने विभिन्न विषयों पर बहस की, आज भी परिचर्चा गुंजायमान है, पुराने चिट्ठाकार ना नही, नये लोग वहाँ पर अभी भी हलचल मचा रहे है। हिन्दी चिट्ठाकारों ने एक मंच प्रदान किया है, कोई जरुरी नही, सभी पुराने चिट्ठाकार उस मंच पर हमेंशा मौजूद रहे, हम रहे या ना रहे, सामूहिक चर्चा के लिए परिचर्चा का मंच मौजूद रहेगा। अमित भाई परिचर्चा का संचालन करते है।
ब्लॉग बढने के साथ साथ, नारद पर अपडेट की फ्रिक्वेन्सी बढाने की मांग भी बढने लगी। जो ८ घन्टे से शुरु होते होते, हर १ घन्टे पर जाकर खत्म हुई। सब कुछ सही चल रहा था, देबू की आपत्तियां भी अब कम हो गयी) यहाँ एक बात मै बताना चाहूंगा, देबू को भले ही नारद प्रोजेक्ट से कुछ आपत्तियां थी, लेकिन नारद पर जब भी कोई तकनीकी समस्या होती तो देबू सहायता के लिए हाथ बढाने वाला पहला बन्दा होता। कई बार तकनीकी समस्या आयी, तो देबू ने निजी आपत्तियों को दरकिनार कर उन्हें सुलझाया। देबू के इस रुप को देखकर मैं तो उसका मुरीद हो गया। हिन्दी चिट्ठाकारों मे यही बात सबसे अच्छी दिखती है, सामूहिक प्रयासों के लिए निजी आपत्तियां कोई मायने रखती।
खैर आइए बात करते है नारद की। नारद अपना कार्य बखूबी कर रहा था, हिन्दी चिट्ठाकारों के लिए नारद संजीवनी का कार्य कर रहा था। नारद पर अब अपडेट हर घन्टे में हो रहे थे, लेकिन एक दिन अचानक। पंकज नरुला ने खबर की, कि उनके होस्ट ने हाथ खड़े कर दिया है, चूंकि हम शेयर्ड होस्टिंग पर थे और नारद जैसे प्रोजेक्ट को ज्यादा रिसोर्सेज की जरुरत पड़ती थी, इसलिए होस्टिंग वालों ने हाथ खड़े कर दिए थे। इस कारण नारद को हमें अस्थाई रुप से बन्द करना पड़ा। लेकिन नारद जैसे प्रोजेक्ट का बन्द होना, हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए सबसे बड़ी घटना था। चिट्ठाकारों के नारद के प्रति विश्वास, प्यार और स्नेह को देखते हुए इसे डेडीकेटेड होस्टिंग पर ले जाना लाजमी हो गया। नारद के बन्द होने से मानो हिन्दी चिट्ठाकारों को आक्सीजन मिलनी बन्द हो गयी। हर तरफ़ हड़कम्प मच गया, कई साथियो ने अस्थाई इन्तजाम किए और नारद के लिए डेडीकेटेड होस्ट की खोज शुरु हुई।
अब चूंकि हमें डेडीकेटेड होस्टिंग पर जाना जो, सचमुच काफी महंगा आप्शन था, इसलिए सभी लोगों से सहयोग की अपील की गयी। सभी ने अपने अपने स्तर पर नारद के लिए सहयोग दिया। किसी ने तकनीकी सहयोग किया, किसी ने आर्थिक। हमारे पास कुछ प्रायोजकों के प्रस्ताव भी आए, लेकिन हमने नारद प्रोजेक्ट को विज्ञापन मुक्त रखने का प्रण किया हुआ था, इसलिए हमने सामूहिक सहयोग वाले मॉडल पर जाना बेहतर समझा। लेकिन हमने यह निश्चय किया कि हम नारद के लिए सहयोग सिर्फ़ हिन्दी चिट्ठाकारों से ही लेंगे वो भी सिर्फ़ उनसे जो आत्मनिर्भर हों। मुझे याद है कुछ साथियों के भावपूर्ण पत्र, जो नारद के लिए आर्थिक सहयोग के लिए आगे आए। कई साथियों के सहयोग के प्रस्ताव को सिर्फ़ इसलिए खारिज किया गया, क्योंकि वे या तो गृहणी थी या छात्र। लेकिन नारद के प्रति उनके प्रेम को देखकर हमें बहुत अच्छा लगा। हम आज भी अपने सभी साथियों के सहयोग के आभारी है। ये अपने आप में एक अनूठा प्रयोग था, इस पर लिखने बैठूंगा तो पन्ने के पन्ने भर जाएंगे। मेरे विचार से हिन्दी चिट्ठाकारी के इतिहास मे सामूहिक प्रयास की यह सबसे बड़ी घटना थी, नारद से लगाव और लोगों का उत्साह देखकर हमे नया जोश मिला और हम दोगुने उत्साह से नारद को दोबारा खड़ा करने मे जुट गए।
नारद के लिए आर्थिक सहयोग का इन्तज़ाम तो हो गया था, अब नारद के लिए एक तकनीकी टीम बनायी गयी जो आज भी बखूबी नारद को सम्भाल रही है। नारद के लिए होस्ट की पसन्द पंकज, ईस्वामी, अमित और मैने बहुत सोच विचार के बाद किया। हमे पिछली गलतियों से सबक लेना था, लेकिन चूंकि पैसा सामूहिक था, इसलिए हमने डेडीकेटेड होस्टिंग पर ना जाकर वर्चुअल प्राइवेट सर्वर पर जाने का निश्चय किया। ये डेडीकेटेड और शेयर्ड के बीच की चीज थी। ज्यादा तकनीकी बातें करके आपको पकाऊंगा नही। इस तरह से नारद की वापसी हुई।
नारद अपने पैरों पर खड़ा हो गया था, कुछ नए बदलाव भी किए गए, कई नए प्रयोग किए गए। कुछ लोगों ने पसन्द किए कुछ लोगों ने नापसन्द। अभी हमारे पास तकनीकी लोगों की कमी थी, निशान्त ने आगे बढकर तकनीकी सहायता देने का प्रस्ताव किया, जिसे नारद टीम ने सोचविचार करने के बाद स्वीकार कर लिया। इसी तरह विनोद मिश्रा भी एक तकनीकी उलझन के बीच मे मिले, विचार मिले, तो वे भी आज तकनीकी टीम का हिस्सा है। इन दोनो साथियों के आने से टीम को काफी फायदा हुआ है। जहाँ निशान्त वैब एडमिन का काम देखते है, वही विनोद मिश्रा पीएचपी वाले काम को बखूबी अंजाम दे रहे है। पुराने लोगों और नए साथियों की यह टीम नारद को दिन रात एक करके चालू रखे हुए है। नारद पर दिनोदिन बढने वाले हिट्स से यह लोकप्रिय साइट बन गयी है। नारद पर हिट्स के सम्बंध मे मै कोई झूठे क्लेम नही करता, नारद पर आवाजाही का सारा डाटा सार्वजनिक है। गूगल की साइट रेटिंग वास्तव में लोकप्रियता का एक अच्छा पैमाना है। नारद की साइट की गूगल रेटिंग अब पाँच (5/10) है, इसका मतलब है कि नारद की साइट अगर विज्ञापन लगाना चाहे तो विज्ञापन दाता इसे हाथों हाथ लेंगे। लेकिन शायद अभी इस पर हम एक मत नही है। खैर समय आने पर देखा जाएगा। नारद के लिए हमे तकनीकी लोगों की आज भी आवश्यकता है, आप यदि तकनीकी, ग्राफिक्स कौशल मे तेज है तो नारद को आपकी जरुरत है। यदि आप तकनीकी सहयोग करना चाहते है तो हमे अपने तकनीकी कौशल की जानकारी के साथ सम्पर्क करिए।
इस बीच कुछ अन्य सामूहिक प्रयोग भी हुए, जैसे रामचरित मानस का वैब पर प्रकाशन। मैने सुन्दर काण्ड को टाइप करके रामचरित मानस की पुरानी साइट पर डाला था, लेकिन बाद में रवि भाई और अनूप भाई ने इस प्रयास को आगे बढाया और आज सम्पूर्ण रामचरित मानस इन्टरनैट पर उपलब्ध है। आप भी इस साइट का, अपने अपने ब्लॉग पर प्रचार करिए। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ ले सकें। आपके सुझाव भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है, हमे इसका इन्तज़ार रहेगा।
ये तो रहा मेरी नज़र से हिन्दी ब्लॉगिंग का अतीत। हो सकता है कुछ नाम छूट गए हो, या कुछ बाते याद नही रही हो। यदि ऐसा कुछ हो तो मुझे प्लीज इमेल/टिप्पणी मे लिखकर बता दीजिएगा। मै चाहूंगा कि सभी बातें एक जगह पर दिखें। उम्मीद करता हूँ आप लोगों ने इस अतीत की यादों को पसन्द किया होगा। चिट्ठाकारी का दीपक हम लोगों ने जलाया था, उसे जलाए रखने के लिए ना जाने कितने आंधी तूफानों का सामना हमने किया था, लेकिन इस दीपक का उजाला तभी फैलेगा जब नए चिट्ठाकार उसी भावना से इसको जलाए रखने के लिए तैयार रहेंगे। भविष्य तो युवा कंधो पर ही रहेगा।
हम पुराने चिट्ठाकारों ने बहुत प्यार, मोहब्बत और आपसी भाईचारे इस हिन्दी चिट्ठाजगत के माहौल को बनाया है। इतने सौहार्दपूर्ण तरीके और व्यवस्थित तरीके से सबको एक सूत्र मे जोड़ने की कोशिश की है, हम इसमे सफ़ल भी रहे है, लेकिन आजकल कुछ नासमझ लोग, माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे है, शायद सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में, मेरा सभी चिट्ठाकारों से निवेदन है कि किसी भी प्रकार के कुचक्र मे ना फंसे। अपने विवेक से निर्णय लें। मुझे पता है कि कुछ लोग नारद पर भी इल्जाम लगा रहे है, लेकिन आप अपने विवेक से सोचें क्या नारद पर इल्ज़ाम लगाना कोई समझदारी है? नारद का काम सिर्फ़ ब्लॉग का कन्टेन्ट दिखाना है, उसको पढना नही, हमारा प्रतिदावा देखें। लेकिन ये लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना उल्लू सीधा करना चाहते है, नारद पर हमने नियमावली बना रखी है और हम उसी के अनुसार कार्य करते है। जिस दिन कोई भी ब्लॉग नियमावली के खिलाफ़ जाएगा, हम उचित निर्णय लेंगे। निर्णय लेने मे हम ब्लॉगर की वरिष्ठता और कनिष्ठता को भी नही देखते, सामूहिक स्थल पर संयत व्यवहार करना सबकी जिम्मेदारी है। इन्ही बातों के साथ, आपको ब्लॉगिंग करते रहने की प्रेरणा के साथ, अपना लेख समाप्त करता हूँ। पढते रहिए मेरा पन्ना…..नही नही आप सबका पन्ना।
Leave a Reply to Ramashankar Sharma Cancel reply