अतीत के झरोखे से – २

गतांक से आगे…….

जिस हिसाब से चिट्ठों की संख्या बढ रही थी, उस हिसाब से धीरे धीरे लग रहा था कि स्थिति काबू से बाहर होती जाएगी। इधर मिर्ची सेठ (पंकज नरुला) अपनी टैस्टिंग कर रहे थे, देबू दा ने एक जावास्क्रिप्ट बनायी जिससे हम अपने ही ब्लॉग पर नए ब्लॉग्स का नए ब्लॉग्स के लिंक देख सकें। उधर रमण कौल ने अपना तकनीकी ज्ञान प्रयोग किया और एक जावा स्क्रिप्ट बनायी जिससे हम सभी अपने अपने ब्लॉग पर नए ब्लॉग देख सकें। लेटेस्ट पोस्ट देखने के लिए भी देबू ने एक जावास्क्रिप्ट बनायी थी, जिससे हम लेटेस्ट पोस्ट के बारे मे जानकारी प्राप्त कर सकते थे। जब चिट्ठा विश्व(अक्सर) डाउन होता था तब हम उस स्क्रिप्ट से लेटेस्ट पोस्ट और ब्लॉग्स देखते थे। सब कुछ विकेन्द्रीय तरीके से चल रहा था। सभी अपने अपने सर्वर पर कुछ नया कर रहे थे। अलबत्ता ब्लॉग पंजीकरण का काम चिट्ठा विश्व पर हो रहा था, वही से हमे नए ब्लॉग की खबर मिलती रहती थी। । रमण कौल ने कुछ नए प्रयोग किए और उस लिस्ट को एक ड्रापडाउन बाक्स मे देना शुरु किया और पंजीकरण के लिए भी वहाँ लिंक दे दिया (अभी भी कुछ पुराने ब्लॉग्स मे आपको वो स्क्रिप्ट चलती हुई मिल जाएगी)। सर्वज्ञ विकी पर इन सभी स्क्रिप्टस के बारे मे सिलसिलेवार जानकारी उपलब्ध है।

काम बहुत ज्यादा था, लोग थे कम, वो भी लोग सिर्फ़ अपने खाली समय मे ही इस कार्य के लिए समय निकाल सकते थे, इसलिए कार्य गति नही पकड़ रहा था। फिर टीम मे बन्दे अलग अलग टाइमजोन से होते थे, तो अक्सर किसी एक की रात काली होती ही थी। भले ही कितनी रातें हम लोग ना सोएं हो, लेकिन सबके दिमाग पर धुन सवार थी, इन्टरनैट पर हिन्दी को एक मजबूत स्थान दिलाना है| यह उद्देश्य बहुत सारे लोगों के बिना जुड़े नही हो सकता था और लोगों को जोड़ने के लिए इन्टरनैट पर हिन्दी मे कन्टेन्ट बहुत जरुरी था और कन्टेन्ट के लिए हिन्दी ब्लॉगिंग बहुत मुफ़ीद थी। एक समस्या और भी थी, कि नए लोगों को कैसे प्रोत्साहित किया जाए, इसके लिए अनूप भाई और मैने कमान सम्भाली, नए चिट्ठों पर टिप्पणी करना और उन्हे ज्यादा से ज्यादा ब्लॉग लिखने के लिए प्रोत्साहित करना। उधर अनुनाद भाई भी पूरे जोशोखरोश से जुड़े रहे, इन्टरनैट पर हिन्दी साइटों के बारे मे जानकारियां और यूनिकोड के प्रयोग और सरकारी महकमे के बारे मे उनका ज्ञान दूसरों से कंही ज्यादा था। उनके ज्ञान की एक झलक देखिए यहाँ

हमे पता था कि इन्टरनैट पर जितने ज्यादा से ज्यादा ब्लॉग आएंगे उतने ही ज्यादा से ज्यादा लोग हिन्दी ब्लॉगिंग की तरफ़ आकर्षित होंगे। एक समस्या और भी थी, हिन्दी लिखने की। समस्या गहरी तब हो जाती जब लोग विन्डोज 95/98 या और पुराने संस्करण प्रयोग करते। आशा की एक किरण बीबीसी हिन्दी से मिली, जिन्होने रघु फोन्ट डाउनलोड कराने का प्रबन्ध कराया। सही मायनों मे बीबीसी हिन्दी की वजह से ही लोगों मे हिन्दी समाचारों के प्रति जिज्ञासा जागी, नही तो उसके पहले हर समाचार पत्र के अलग अलग फोन्ट और अलग अलग पचड़े। समाचार पत्र भी डाउनलोड का लिंक देकर भूल जाते थे, पढो ना पढो हमारी बला से। वैसे भी वैब पर उन्होने साइट बनाकर सिर्फ़ खानापूर्ति ही की थी।

हिन्दी लिखने के लिए भी काफी तकलीफ़ें थी, कोई कुछ प्रयोग करता था कोई कुछ। मैने तख्ती चुना, हालांकि कुछ दिक्कतें थी, लेकिन फिर भी काम चल जाता था। अच्छा प्रोग्राम था, बस कोई भी एक यूनिकोड फोन्ट चाहिए होता था इसको, विन्डोज के हर तरह के वर्जन पर चलता था। इस बीच रमण कौल ने आनलाइन टूल यूनिनागिरी विकसित किया, जिसमे पहले हिन्दी,कश्मीरी फिर गुरमुखी(पंजाबी) और अन्य भाषाएं विकसित की गयी। रमण के पेज पर सारे एडीटर्स का लिंक है, जरुर देखिएगा। इधर ईस्वामी ने हग टूल विकसित किया (इसने नाम भी किसी विशेष जगह पर बैठकर सोचा होगा) फिर उस टूल को वर्डप्रेस मे डाला गया। ईस्वामी भी काफी जुगाड़ी बन्दा है, लेकिन सबसे भिड़ता बहुत जल्दी है, बस किसी ने लाल कपड़ा दिखाया नही कि टक्कर मारने को उतावला हो जाता है। वैसे भी इसका सांड प्रेम किसी से छिपा नही है। इसने भी काफी रातें काली की और हिन्दी के लिए टूल बनाया, ब्लॉग नाद के प्रोजेक्ट के लिए काफी काम किया इसने। बाद मे ईस्वामी के इस टूल मे आशीष ने इसमे वर्तनी जाँच (Spell checker) लगाया था। मैने शुरुवात तख्ती से जरुर की थी, लेकिन बाराहा के आने के बाद तो पूरा नज़ारा ही बदल गया

अब हमारे पर ब्लॉगर सिर्फ़ भारत और अमरीका से ही नही, बल्कि जर्मनी, जापान और आस्ट्रेलिया से भी आने लगे थे। हमारे ब्लॉग के काउन्टर बताते थे, पढने वाले पूरे विश्व से आ रहे थे। अब समय था, ब्लॉगिंग को एक नयी दिशा देने का। सब कुछ अच्छा अच्छा हो, कोई जरुरी नही। कुछ पुराने लोग हिम्मत हार गए, या हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए समय नही निकाल पा रहे थे। कुछ लोग ब्लॉगिंग ही छोड़ गए, कुछ लोगों ने कम कर दी। लेकिन फिर भी दस बीस लोगों ने ब्लॉगिंग लगातार जारी रखी। इधर मिर्ची सेठ ने अपनी टैस्टिंग कम्प्लीट कर ली थी, अब इसको चलाने का जुगाड़ करना था। पहले पहल तो मेरे को आइडिया क्लिक नही किया, क्योंकि चिट्ठा विश्व पहले से ही था, लेकिन उसकी परेशानियां सर्वविदित थी। लेकिन चिट्ठा विश्व से देबू का भावनात्मक जुड़ाव था, इसलिए देबू को समझाना एक बहुत बड़ा काम था । फिर जावा होस्टिंग हम लोग अफोर्ड नही कर सकते थे, फाइनली देबू की शुरुवाती आपत्तियों के बावजूद पंकज नरुला और मैने नारद प्रोजेक्ट शुरु किया। दिन भर मै सम्भालता था, रात मे (जब अमरीका मे दिन होता था) तो मिर्ची सेठ। पहले हम इसको दिन मे सिर्फ़ एक या दो बार अपडेट करते थे। ब्लॉग बढते गए, लोग जुड़ते गए, लेकिन अपनापा और भाईचारा वैसा का वैसा ही रहा। जहाँ इतने तकनीकी लोग शामिल हो तो सर फुटव्वल तो होनी थी, काफी हुई भी, लेकिन लोग समझदार थे, आपस में झगड़े नही, विवादों को दिल पर नही लिया गया। मेरा खुद ईस्वामी से पंगा हुआ था, पंगा क्या बड़ा सा फ़ड्डा हुआ था, लेकिन आज देखो, छोटे भाई की तरह है। कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है हम यहाँ एक मकसद के लिए इकट्टा हुए है, यहाँ व्यक्तिगत विवादों के लिए जगह ही कहाँ है?

कुछ लोगों ने शायद पूछा था कि हिन्दी चिट्ठाकारी मे अपनापा, बहनापा सच्चा है या दिखावा?
अगर वे लोग यहाँ कुछ समय टिक जाएं तो अपने आप स्वयं अनुभव कर लेंगे। अनुभव ही सबसे बड़ा शिक्षक होता है। अलबत्ता उनकी जानकारी के लिए मै अपना अनुभव बताना चाहता हूँ, हिन्दी चिट्ठाकारी मे आकर मुझे बहुत अच्छे दोस्त मिले। सभी अपने अपने क्षेत्र मे महारथी थे, लेकिन सभी ने निस्वार्थ भाव से एक दूसरे की मदद की, ज्ञान बाँटा, एक दूसरे के सुख-दुख, खुशी गम आपस मे बाँटा। हमने एक दूसरे को कभी नही देखा, कोई पुरानी पहचान भी नही थी। कौन करता है इतना, कहाँ है इतना प्यार और अपनापन? मुझे याद है २००४ का इन्डीब्लॉगीज अवार्ड (हिन्दी ब्लॉग्स के लिए) का चुनाव था, अतुल अरोरा ने, मुझे पछाड़ते हुए इसे जीता, लेकिन सबसे ज्यादा खुशी मेरे को हुई। क्योंकि अवार्ड चाहे किसी को भी मिले, जीत तो हिन्दी की ही हुई ना। मेरे ख्याल से लेख फिर लम्बा हुआ जा रहा है, इसे अगले भाग तक ले जाना पड़ेगा। अगले भाग मे बात करेंगे अहमदाबाद के ब्लॉगरों की खेप की, बुनो कहानी की और नारद के डाउन होने के किस्से की।

पुनश्च: देबाशीष भाई की टिप्पणी के सार को ऊपर डाल दिया गया है। देबाशीष भाई का धन्यवाद। अगर मै कुछ भूल रहा हूँ, प्लीज मेरे को याद दिलवा कर सही करवा दीजिएगा।

अभी जारी है आगे…………………

21 responses to “अतीत के झरोखे से – २”

  1. Sanjeet Tripathi Avatar

    अच्छा लग रहा है अतीत को जानना

  2. Sanjeet Tripathi Avatar

    और यह भी मालूम चल रहा है कि आज जो नारद है उसके पीछे आप लोगों की कितनी मेहनत छुपी हुई है, सच कहूं तो हम जैसे नए आने वाले लोगों के लिए आप लोगों ने बहुत कुछ खड़ा कर दिया है। अब यह हम नए लोगो कि जिम्मेदारी है कि इसे , इसी सद्भभाव के साथ कायम रखें

  3. संजय बेंगाणी Avatar

    मजा आने लगा है. चलने दो. जरूरी हुआ तो भाग तीन के बाद भी जारी रखे.

  4. राजेश कुमार Avatar

    जीतु भाई, यदि तीसरे, चौथे, पाँचवे भाग तक जाना पड़े तो भी जारी रखें, बहुत आनन्द आ रहा है। मैने पिछले साल अपनी नासमझी में रमण कौल को मेल लिखी थी कि ‘श्र’ का बटन क्यों नहीं डाला, क्या आपको ये मालूम नहीं कि इसकी भी जरुरत होती है। कोई और होता हो शायद भड़क के कहता कि पहले ठीक से प्रयास करो फिर बात करना, मगर नहीं। उत्तर तुरन्त आया जिसमे ‘श्र’ लिखने का तरीका लिखा था मगर कोई गुस्सा नहीं था, ये गजब का बड़प्पन है।रमण जी की जानकारी के लिए बता दूँ कि ये शब्द भी उन्हीं के बनाए औजार पर लिखे गए हैं। जब कभी मुझे कोई बालक कम्पूटर पर गेम खेलते दिखते हैं, मैं उन्हे हिन्दी लिखने के खेल सिखाता हूँ, एक दफा तो एक बालक के पिताजी भी उत्साहित हो गए।रमण जी, आपका बहुत धन्यवाद।
    दूसरा, जब मैं चेन्नई ब्लागकैंप में था, और भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग के उपर प्रश्न आया था। मुझे लगा की एक सेशन लिया जाय(ये हुआ नहीं वो अलग कहानी है), मगर कुछ अनुभवी लोगों कि जरुरत महसूस हुई। चिटठाकार पर एक मेल डालने के कुछ मिनट बाद ही देबु और पंकज नें मुझे फोन किया। ये उनका समर्पण है जिसकी दाद देनी चाहिए।
    शायद मेरी बकबक बहुत हो गई, मगर खत्म करने से पहले आप सभी हिन्दी वेब आंदोलन के जनकों को बहुत धन्यवाद। मैं कभी कभी ही चिट्ठा लिखता हूँ, मगर, नारद तो दिनचर्या का हिस्सा है।

  5. Debashish Avatar

    उधर रमण कौल ने अपना तकनीकी ज्ञान प्रयोग किया और एक जावा स्क्रिप्ट बनायी जिससे हम सभी अपने अपने ब्लॉग पर नए ब्लॉग और उनकी लेटेस्ट पोस्ट देख सकें…लेकिन जब चिट्ठा विश्व(अक्सर) डाउन होता था तब हम रमण कौल के द्वारे जाते थे।

    जहाँ तक मुझे याद पड़ता है ये सूची केवल ब्लॉग की थी, प्रविष्टियों की नहीं। ऐसी ब्लॉगरोल सूची रमण ने भी बनाई थी और मैंने भी। इसका उल्लेख यहाँ पर किया गया है। नये ब्लॉग पोस्ट की सूचना देने वाली स्क्रिप्ट जो मैंने बनाई थी वो ब्लॉगडिग्गर की ही फीड से नई प्रविष्टियों की सूचना देता था, इसका ज़िक्र यहाँ है, उस समय साईडबार विजेट मयस्सर नहीं होते थे। अपनी पोस्ट में सुधार कर लें।

  6. अभय तिवारी Avatar

    आप लोगों को इस बात का एहसास नहीं होगा.. पर आप लोग इतिहास के पात्र हो चुके हैं.. कोई जानकर सोचकर नहीं बनाता इतिहास..बन जाता है..हमारे लिये आसान रास्ता बनाने के लिये आप लोगों ने बड़ी कठिनाईयां झेलीं.. बस इतना कह सकता हूँ.. शुक्रिया..

  7. PRAMENDRA PRATAP SIN Avatar

    पढ़ कर अच्‍छा लग रहा है।

  8. अतुल शर्मा Avatar

    अच्छा लग रहा है यह सब पढ़ कर, नींव के पत्थर इतने दमदार है तभी आज नारद की इमारत बुलंदी से खड़ी है।

  9. pankaj bengani Avatar
    pankaj bengani

    मजा आ रहा ताऊ, सच्ची.

    छापते रहो.. अभी बहुत कुछ बाकि है.. भाग 100 तक चलना चाहिए.. वाह!

  10. अफ़लातून Avatar

    बहुत जरूरी दस्तावेज बन रहा है जितेन्द्र चौधरीजी। इसे इतना औपचारिक,अधिकृत मान रहा हूँ कि आपसे नये औपचारिक सम्बोधन से मुखातिब होना पड़ रहा है।गूगल पर समूह ,परिचर्चा,सर्वज्ञ आदि आने में अभी देर है ?

  11. समीर लाल Avatar

    बहाव के साथ बहाये ले जा रहे हो…हम बहे जा रहे हैं. बहाते रहो!! 🙂

  12. अरुण Avatar

    जीतू जी
    आपके भागीरथी प्रयत्न को सलाम
    मै तो महा कवि की दो पक्तिया दोहरा रहा हू
    हिमाद्रि तुंग श्रंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
    स्वंय प्रभा स्मुज्वला स्वतन्त्रता पुकारती
    अमत्य वीर पुत्र हो द्र्ढ प्रतिज्ञ सोच लो
    प्रशस्त पुण्य पंथ है बढे चलो बढे चलो

  13. v9y Avatar

    क्या ही अच्छा हो कि हिंदी ब्लॉग से संबंधित मुख्य घटनाओं की एक सूची तिथि के अनुसार क्रमित कर बनाई जाए. दिनांकों की जानकारी तो ब्लॉगों (ख़ासकर अक्षरग्राम, हिंदी जैसे ब्लॉगों पर) पर मिल ही जाएगी. अगर विकी पर बन सके तो और भी बेहतर. इससे ये होगा कि घटनाएँ चर्चा से छूटेंगी नहीं.

  14. SHUAIB Avatar

    पढते हुए बहुत अच्छा लग रहा है – अगले भाग का शुद्दत से ईन्तेज़ार है।

  15. जगदीश भाटिया Avatar

    बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी। नये लोग जो नारद के बारे में कुछ भी लिखने बोलने लग जाते हैं उनके लिये यह सब जानना बहुत जरूरी।

  16. अतुल Avatar
    अतुल

    एक ठो सुधार और कर लो ताऊ। हिंदी ब्लागिंग का पहला पुरस्कार नौदो ग्यारह के आलोक भईया जीते हैं।

  17. सागर चन्द नाहर Avatar

    भाटिया जी ने कम शब्दों में बहुत कुछ बता- समझा दिया 🙂
    लेखमाला अच्छी लग रही है. अगले भाग क इन्तजार है।

  18. जीतू Avatar

    सभी साथियों का बहुत बहुत धन्यवाद।

    देबू दा, मेरे को जितना याद है, मै अपने हिसाब से लिख रहा हूँ, जहाँ मै कुछ भूलूं या चूक जाऊं, सही करवा देना भाई।

    अफ़लातून जी, इसे अनाधिकारिक और अनौपचारिक ही समझा जाए, वैसे भी मै नारद कथा लिखने बैठा था, लेकिन ये हिन्दी ब्लॉगिंग की कथा हो गयी है दिख्खे है।

    विनय भाई, श्रीश और देबू दा ने हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास से सम्बंधित एक पेज सर्वज्ञ पर बनाया तो है लिंक ये रहा,
    http://www.akshargram.com/sarvagya/index.php/History_of_Hindi_Blogging
    (लेकिन अभी ये अधूरा है, इसे सभी साथियों के सहयोग से पूरा किया जाएगा।)

    अतुल भाई, भूल सुधार की जा रही है।

    अरुण भाई, हम इस इतिहास का सिर्फ़ एक हिस्सा भर थे, सारी प्रशस्ति के हकदार बहुत सारे लोग थे। मै अकेला नही। इसलिए गुणगान मे बाकियों को मत भूलिएगा, नही तो बाकी लोग पकड़ कर मेरे को पीट देंगे।

  19. आशीष Avatar

    लेख श्रखला अच्छी है, मजा आ रहा है पुरानी बातो को याद कर !
    🙂

  20. Amit Avatar

    बढ़े चलो, बढ़े चलो, we are reliving the history!! 🙂

    अब यह हम नए लोगो कि जिम्मेदारी है कि इसे , इसी सद्भभाव के साथ कायम रखें

    और इसे आगे बढ़ाने और समृद्ध बनाने में सहयोग देने की भी ज़िम्मेदारी है। यह हम सबका है, हमें ही करना है। 🙂

  21. श्रीश शर्मा 'ई-पंडित' Avatar

    काफी दिनों से व्यस्त होने पर आज इस पोस्ट को पढ़ पाया। अब जैसा कि आपको मालूम ही है मुझे हिन्दी कंप्यूटिंग के इतिहास में हमेशा ही रुचि रहती है। अनुरोध है कि ये श्रृंखला जारी रखें।

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