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सिंधु घाटी सभ्यता को हम तीन समयकाल में देखते हैं
3300 से 2600 ईसा पूर्व : शुरुआत
2600 से 1900 ईसा पूर्व : संपन्न सभ्यता
1900 से 1300 ईसा पूर्व : अंत अवस्था
शुरुआत में बसने और विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हुई।
2600 ईसा पूर्व में, इनकी संपन्नता विश्व विख्यात थी। ये दूसरी सभ्यताओं से वस्तुओं का विनिमय करते और ज्यादातर एक्सपोर्ट करते।
1900 से 1300 ईसा पूर्व, कुछ प्राकृतिक आपदाएं, पर्यावरणीय परिवर्तन की समस्या और कुछ दूसरी समस्याएं हुई, जिससे इस सभ्यता की पहचान खत्म हुई, इस पर पूरा लेख लिखेंगे।
शुरुआत में लोगों ने सिंधु और उसकी सहायक नदियों के आसपास बसना शुरू किया, धीरे धीरे ये लोग यमुना और सहायक नदियों तक पहुंचे। कुछ लोग आगे बढ़कर अखनूर तक जा बसे, कुछ लोग सोमनाथ मंदिर के आसपास जाकर बसे।
कौन थे ये लोग, कहाँ से आए थे?
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कौन थे और कहाँ से आए थे, इसमे काफी विवाद है। कुछ लोग मानते हैं वे बलूचिस्तान के पहाड़ों से पानी और हरियाली की खोज करते हुए आए थे और सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में आकर बस गए और फैलते चले गए। कुछ लोग मानते थे ये लोग बाहर से आए और यहाँ बस गए। कुछ समझते हैं ये लोग द्वारिकापुरी से आए थे। जितने मुँह उतनी ही बातें। मुझे बलूचिस्तान वाली थ्योरी ज्यादा सही दिख रही है। इसके लिए लाठी डंडे ना उठाए जाएं, आपको जो अच्छा लगे, मान लीजिए।
सिंधु घाटी सभ्यता की सीमाएं
सिंधु घाटी सभ्यता की सीमाएं काफी दूर दूर तक थी।पश्चिम में बलूचिस्तान के सुतकाडोर, दक्षिण में महाराष्ट्र में अहमदनगर के पास दयिमाबाद, पूर्व में मेरठ के पास आलमगीर (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) और उत्तर में जम्मू कश्मीर के अखनूर के पास मांडा तक सिंधु घाटी सभ्यता बसी हुई थी। कुल मिलकर देखा जाए तो कुल क्षेत्रफल 1500 किलोमीटर से भी ज्यादा का था। यह सभ्यता उस समय की सभ्यताओं में सबसे बड़ी और तकनीकी रूप से सबसे समृद्ध थी। जहां भी ये लोग थे, आसपास पानी और उपजाऊ ज़मीन बहुतायत में थी। जाहिर है, ये लोग खेतीबाड़ी में माहिर थे, इस पर पूरा लेख बनता है।
सिंधु घाटी सभ्यता के समय की बाकी सभ्यताएं कौन सी थी?
चीन की सभ्यता : व्यापार के निपुण लोग, छोटी अर्थव्यवस्था थी, लेकिन सबसे ज्यादा जोखिम उठाने वाले व्यापरियों में गिनती होती थी। पूरी दुनिया में घूम घूम कर व्यापार करते थे।
मैसोपोटेमिया (सुमेरियन) : आज का इराक़, इनकी सीमा ओमान के पास से शुरू होती थी। इन्होंने भाषा, व्यापार, प्रबंधन और सरकारी व्यवस्थाओं में ढेर सारे प्रयोग किए।
मिश्र (इजिप्ट) : मिश्र की सभ्यता भी काफी विकसित थी, जब मिश्र वाले बड़े बड़े पिरामिड बना रहे थे, उस समय सिंधु घाटी वाले व्यवसाय के नए नए माप और प्रणालियां विकसित कर रहे थे।
दिलमन : आज का ईरान
मगन : आज का ओमान और यूएई
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का कोई नाम नहीं था?
था जी, क्यों नहीं होगा, इतनी महान सभ्यता, बिना नाम नहीं होती। दूसरी सभ्यता वाले इनको ‘मेलूहा’ के नाम से जानते थे, दरअसल, सुमेरियन (मैसोपोटेमिया) के लोगों ने इनको यह नाम दिया था। मेलूहा (Meluhha) यानि सिंधु नदी के पास रहने वाले संपन्न व्यापारी वर्ग।
इनका मुख्य पेशा
निःसंदेह खेती बाड़ी, पशु पालन, शिल्पकारी, कसीदाकारी और मुख्यतः कांस्यकारी । कृषि उपज गेंहूँ, जौ, बाजरा और कपास की होती थी। नदी से मछली पकड़ने में इनकी महारत थी। ये लोग अत्यंत गुणी, मेहनती और मेधावी लोग थे। अनेक तरह से पत्थरों और रत्नों के शानदार आभूषण इनकी विशेषताओं में से एक था। ये कांस्य युग था, इन लोगों ने दुनिया को माप (बांट), औजार और शिकार करने के हथियार दिए। किसी भी ख़ुदाई में कोई ऐसा हथियार नहीं मिला जो मानवता के खिलाफ हो, इनके सारे हथियारों को आप शिकार में प्रयोग होने वाले छोटे हथियारों की श्रेणी में रख सकते हैं।
क्या सिंधु घाटी वाले दूसरी सभ्यताओं से व्यापार करते थे?
यकीनन! बिना व्यापार के इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं चल सकती थी। सबसे ज्यादा इनका व्यापार चीन और मैसोपोटेमिया के लोगों से होता था। यहाँ से मुख्यतः अनाज, सोने और अन्य धातुओं के आभुषण, पशुओं की खाल से बने वस्त्र, हाथी दांत के औजार, तराजू, माप के यंत्र और अन्य तकनीकी औजार। वापसी में खनिज, कच्ची धातु आती थी। चीन से रेशमी वस्त्र आयात होता था।
सिंधु घाटी के व्यावसायिक केंद्र
मोहेनजोदाड़ो : सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र, जैसे आज का मुंबई। यहाँ सबसे बड़े व्यवसायी रहते थे।
हडप्पा : दूसरा सबसे बड़ा शहर, यहॉं पर कृषि आधारित व्यवसायों की बहुतायत थी।
कालीबंगा : आभूषणों का सबसे बड़ा केंद्र। यह उस समय की सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित था। मिट्टी के बर्तन, आभूषण, कृषि के यंत्र और ढ़ेर सारी व्यवसायिक गतिविधियों का केंद्र था कालीबंगा। इस सभ्यता के पतन के समय, इस शहर की बहुत बड़ी भूमिका थी। इस शहर पर एक अलग लेख बनता है।
राखीगढी : कांस्य युग का महत्वपूर्ण शहर, यहॉं पर कांस्य के बर्तन, आभूषण और औजारों का बड़ा व्यापार होता था।
ढोलावीरा : आज के गुजरात में, यहॉं पर हस्तकला और रत्नों के आभूषणों का उत्पाद होता था। बंदरगाहों से नजदीक होने के कारण, यह शहर बड़े वेयरहाउस की तरह से काम भी करता था।
लोथाल, कुंतासी और सोमनाथ के पास के इलाके बंदरगाह वाले शहर थे, इनका नियंत्रण ढोलावीरा और सुरकोटडा (Surkotada) से होता था। कहा जाता है, सुरकोटडा, मवेशियों का बड़ा व्यावसायिक केंद्र हुआ करता था।
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Photo : AI Generated and Internet
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