नही जी, ये किसी कहानी का शीर्षक नही है। लेकिन पिछली हुई एक वारदात मे इन तीनो शब्दों का आपस मे बहुत तगड़ा सम्बंध है। एक चोरी हुई और सजा के तौर पर पुलिस ने चोर को केले खिलाए….नही नही, ये बात कुछ हजम नही हुई। अरे जनाब हजम तो वो चोर कर गया पूरे के पूरे ४० केले और पुलिस उसका मुँह ताकती रह गयी। हुआ यूं कि….
कलकत्ता मे एक चोर ने एक महिला के गले से ४५,००० रुपए की कीमत का एक हार चुरा/लूट लिया। लूट लिया तो लूट लिया, तुरन्त महिला ने शोर मचाया और पुलिस को पुकारा। पुलिस भी (पहली बार) टाइम पर पहुँची और चोर को धर दबोचा। लेकिन चोर था पुराना चावल, तुरन्त ही लूटे हुए हार को गटक गया, यानि मुँह के रास्ते पेट के हवाले कर दिया। पुलिस देखती रह गयी। अब पुलिस क्या करती। पुलिस ऐसे केस को पहले भी हैन्डिल कर चुकी थी, पुलिस ने उस चोर को सामने बैठाकर, केले खिलाए, एक दो नही पूरे चालीस के चालीस। इस इन्तज़ार मे कि चोर को दिशा मैदान की जरुरत महसूस होगी, तो हार बरामद होगा। लेकिन जनाब चोर भी बहुत बड़ा खाऊ था, सारे केले हजम कर गया और डकार भी नही। फिर पुलिस ने उसे चिकन, चावल और रोटी खिलाई, तब जाकर चोर साहब को लेट्रीन जाने की जरुरत महसूस हुई। फिर….फिर क्या पुलिस ने हार बरामद किया, महिला अब उस हार को पहने या फेंके ये उसका आउटलुक। और चोर महोदय, उसको तो सजा मिलेगी ही, लेकिन एक बात है, उसे अब केलों से सख्त नफ़रत हो गयी है। आपको इस कहानी पर विश्वास नही आ रहा? अरे… ये रहा लिंक आप खुद ही पढ लीजिए ना।
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