Ladakh : Sindhu confluence

कल सिंधु संगम को दूर से ही देखा था, आज पास जाकर समय बिताने की बारी थी।

लेह की तीसरी सुबह एक अलग ही एहसास लेकर आई। बाइक की सवारी का जुनून सर पर सवार था, और दिल मचल रहा था पहाड़ों की ठंडी हवाओं में खुद को खो देने के लिए। परिवार की चिंता जायज़ थी, कुछ साल पहले हुए हादसे की यादें ताज़ा थीं, लेकिन इस बार एक अनुभवी साथी के साथ सफर तय था। बाइक के पिछले सीट पर बैठते ही जैसे ही इंजन की गड़गड़ाहट कानों में पड़ी, दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। लेह की सड़कों पर बाइक चलाने का यह अनुभव किसी सपने से कम नहीं था।

हमारा आज का सफर सिंधु और ज़ांस्कर नदियों के संगम तक था। सुबह की ताजगी और बाइक की रफ्तार के बीच पहाड़ों का सौंदर्य दिल को छू रहा था। दोनों ओर ऊँचे पहाड़, शांत सड़कें, और बीच में सिर्फ हम और हमारी बाइक। ऐसा लगता था जैसे ये वीरान रास्ते सिर्फ हमारे इंतज़ार में थे। हर मोड़ पर बाइक झुकती, और मन रोमांच से भर जाता। कभी ऊँचाई पर जाते, तो कभी अचानक नीचे उतरते। ये पल ऐसे थे जैसे हम किसी रोमांचक फिल्म के किरदार हों, और ये रास्ते हमारी स्क्रिप्ट का हिस्सा।

सिंधु और ज़ांस्कर नदियों का संगम दूर से ही दिखने लगा। संगम के करीब पहुंचते ही प्रकृति के इस अनोखे खेल ने हमें अपने आकर्षण में जकड़ लिया। दूर से दो अलग रंगों की धाराएं—एक नीली और शांत, दूसरी भूरी और उग्र—एक-दूसरे में विलीन होती दिखीं। जैसे दो विपरीत स्वभाव के लोग एक-दूसरे को समझने और अपनाने की कोशिश कर रहे हों। यह मिलन जितना अद्भुत था, उतना ही आध्यात्मिक भी।

हम संगम के नज़दीक पहुंचे, जहां कोई और पर्यटक नहीं था। यह दुर्लभ क्षण था, जब हम अकेले थे, और नदियां हमारे सामने बह रही थीं। एक अजीब सी शांति थी वहाँ। पानी के बहाव की आवाज़, ठंडी हवा, और ऊँचे पहाड़ों की छांव में खड़े होकर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हम धरती के सबसे खूबसूरत कोने में आ पहुंचे हों। यहां सिर्फ नदियों का ही नहीं, बल्कि आत्मा और प्रकृति का भी मिलन हो रहा था। यह संगम जैसे किसी जीवनदर्शन का प्रतीक था—विपरीत चीजों का साथ आना और एक होकर बहना।

करीबन तीन घंटे वहां बिताने के बाद, हमने वापस लौटने का फैसला किया। धीरे-धीरे वहां और भी पर्यटक आने लगे थे। संगम से वापस लौटते हुए मन में कई विचार उमड़ रहे थे। हर पहाड़, हर मोड़ जैसे हमें एक नई कहानी सुना रहा था। परिवार वालों के साथ मठों की यात्रा अभी बाकी थी, लेकिन मन अभी भी संगम के उस दृश्य में खोया हुआ था।

यह तीसरा दिन लेह की वादियों में बिताए गए सबसे खास दिनों में से एक था। जल्द ही नए सफर पर निकलेंगे, और नई कहानियों के साथ मिलेंगे।

Photo :Leh 2012

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