क्या आपको पता है कि जितने विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारत मे निवेश करते है, उनमे सबसे ज्यादा मॉरिशस से आते है। काहे? क्या मॉरिशस मे सभी अमीर लोग रहते है? ऐसे कौन से लाल लगे है मॉरिशस में। इस सवाल का जवाब बहुत आसान है। सारे निवेशक मॉरिशस होते हुए भारत आते है क्योंकि उनको भारत सरकार को टैक्स का चूना लगाना होता है। वो कैसे? वो ऐसे कि 1983 में भारत सरकार ने अच्छे इरादों से मॉरिशस सरकार के साथ एक ट्रीटी की थी जिसको डबल टैक्स एवाइडेंस ट्रीटी (DTAT) कहते है। इस ट्रीटी के तहत भारत मे मॉरिशस निवासियों को भारत मे शेयर की खरीद फरोख्त करने पर हुई कमाई पर टैक्स ना लेने का वचन दिया था। बदले मॉरिशस सरकार ने भी वैसा ही वचन दिया था। ऊपरी तौर पर देखने पर यह ट्रीटी बहुत ही अच्छी लगती है। लेकिन जरा विस्तार से जाइए तो आपको इसकी खामी का पता चलेगा।
होता ये है कि मॉरिशस सरकार ने अपने देश मे विदेशी कम्पनियों को पाँव जमाने के लिए आमंत्रित किया, उसके एवज मे कम्पनियों ने कैपिटल टैक्स खत्म करने की मांग की, जिसे मॉरिशस सरकार ने शायद 1989 मे मान लिया। अब वहाँ की सरकार को क्या पता था कि ये निवेशक मॉरिशस मे सिर्फ़ नाम के लिए कम्पनी खोलेंगे, और भारत की टैक्स ट्रीटी की खामियों का फायदा उठाएंगे। हुआ भी यही तकनीकी भाषा मे दो देशों के बीच हुई डबल टैक्सेशन एवाइडेंस ट्रीटी का फायदा उठाने को ट्रिटी शापिंग कहते है। बस फिर क्या था, धड़ाधड़ मॉरिशस मे फाइन्शियल कम्पनियों की बाढ आ गयी। अमरीका, मध्यपूर्व, यूरोप और अन्य देशों के निवेशक मॉरिशस मे कम्पनी खोलने के लिए होड़ लग पड़ी, पहली मंजिल मॉरिशस भले ही थी, लेकिन असली उद्देश्य तो भारत मे पैसा लगाना और टैक्स बचाना था। तो भाई हुआ ये, इन कम्पनियों मे मॉरिशस मे नाम के लिए कम्पनी खोली और झोला उठाकर भारत मे निवेश करने लगे। वहाँ के शेयर को कौड़ियों मे खरीदकर अच्छे मुनाफ़े पर बेचने लगे। भारत सरकार तो टैक्स मांग नही सकती क्योंकि वो ट्रीटी से बंधी हुई है और मारिशस मे कैपिटल गैन्स टैक्स है ही नही। इसे कहते है दोनो हाथों मे लड्डू।
गैरतलब है कि भारत मे रहने वाले निवेशक 10% से 30% तक कैपिटल गेन्स टैक्स देते है। और ये मॉरिशस वाले संस्थागत निवेशक एक धेला भी नही देते, ना भारत सरकार को और ना ही मॉरिशस सरकार को। है ना मजेदार खेल। है।एक और झकास बात, लगभग कुछ वैसी ही ट्रीटी सिंगापुर के साथ भी भारत ने की है। एक राज की बात और बता दूं सरकार को चूना लगाने के लिए बहुत से भारतीय म्यूचल फंड्स ने भी अपनी कम्पनियां मॉरिशस मे बना रखी है, और वो वहाँ से निवेश करके सरकार को टोपी पहना रहे है। लेकिन सरकार विदेशी निवेश पर फूले नही समा रही है। देखा जाए तो जितना निवेश हुआ है, उसका आधे से ज्यादा टैक्स का नुकसान भारत सरकार को हुआ है। लेकिन वामपंथी इस पर कभी भी कुछ नही बोले, जब कुछ पता हो तभी तो कुछ बोलें
भारत सरकार तो वैसे भी ना चेतती, अगर किसी ने कोर्ट मे पीआईएल दाखिल करके, सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित ना कराया होता। मौजूदा सरकार ने इसको अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम मे जगह दी, अब सरकार ने जाकर मॉरिशस से बातचीत शुरु की है और उससे अपने कानून मे बदलाव या इस ट्रीटी के प्वाइंट्स पर पुन: विचार करने का आग्रह किया है। लेकिन क्या मॉरिशस भारत की बात मानेगा? ये लाख टके का सवाल है। तब तक तो ये चलता रहेगा।
आपका इस बारे मे क्या कहना है? जब तक आप अपने विचार जरुर व्यक्त करें, तब तक मै अपनी मॉरिशस वाली कम्पनी की बैलेंस शीट देख लूं।
यदि आप विस्तार से इस बारे मे जानना चाहे तो ये वाले लिंक आपके काम के होंगे।
- भारतीय आयकर विभाग डबल टैक्सेशन एवाइडेंस ट्रीटी
- डबल टैक्सेशन एवाइडेंस ट्रीटी
- विकीपीडिया पर इस बारे में जानकारी
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