अतीत के झरोखे से – ४

गतांक से आगे…

साथियों से माफी चाहता हूँ, क्योंकि पिछले कुछ दिनो से मै काफी व्यस्त था। लेख लिखकर रखा हुआ था लेकिन कुछ फाइन ट्यून करने के चक्कर में मसला अटका हुआ था। इधर कुछ दिनो से हिन्दी चिट्ठाकार जगत मे कुछ मुद्दों ने भी मूड अपसेट कर रखा था, नए लोगों को पता ही नही, कि वे जोश मे आकर क्या कुछ बोल जाते है, कभी कभी किसी के दिल को ठेस भी पहुँच सकती है ये इनको पता नही। लेकिन समझाया उन्हे जाए जो समझना चाहें। खैर छोड़िए इन सब बातों को, आइए अतीत की बातें करते है, वहीं से शुरु करते है जहाँ पिछली बातें अधूरी छोड़ी थी।

paricharcha अभी तक सारा वार्तालाप या तो इमेंल द्वारा चिट्ठाकार पर या अक्षरग्राम चौपाल पर होता था। हमें एक चर्चा के मंच की सख्त जरुरत दिखायी दे रही थी (शायद मेंरे इस कथन से बाकी लोग सहमत ना हों) इसलिए परिचर्चा के विचार ने जन्म लिया। परिचर्चा में काफी लोगो ने विभिन्न विषयों पर बहस की, आज भी परिचर्चा गुंजायमान है, पुराने चिट्ठाकार ना नही, नये लोग वहाँ पर अभी भी हलचल मचा रहे है। हिन्दी चिट्ठाकारों ने एक मंच प्रदान किया है, कोई जरुरी नही, सभी पुराने चिट्ठाकार उस मंच पर हमेंशा मौजूद रहे, हम रहे या ना रहे, सामूहिक चर्चा के लिए परिचर्चा का मंच मौजूद रहेगा। अमित भाई परिचर्चा का संचालन करते है।

ब्लॉग बढने के साथ साथ, नारद पर अपडेट की फ्रिक्वेन्सी बढाने की मांग भी बढने लगी। जो ८ घन्टे से शुरु होते होते, हर १ घन्टे पर जाकर खत्म हुई। सब कुछ सही चल रहा था, देबू की आपत्तियां भी अब कम हो गयी) यहाँ एक बात मै बताना चाहूंगा, देबू को भले ही नारद प्रोजेक्ट से कुछ आपत्तियां थी, लेकिन नारद पर जब भी कोई तकनीकी समस्या होती तो देबू सहायता के लिए हाथ बढाने वाला पहला बन्दा होता। कई बार तकनीकी समस्या आयी, तो देबू ने निजी आपत्तियों को दरकिनार कर उन्हें सुलझाया। देबू के इस रुप को देखकर मैं तो उसका मुरीद हो गया। हिन्दी चिट्ठाकारों मे यही बात सबसे अच्छी दिखती है, सामूहिक प्रयासों के लिए निजी आपत्तियां कोई मायने रखती।

खैर आइए बात करते है नारद की। नारद अपना कार्य बखूबी कर रहा था, हिन्दी चिट्ठाकारों के लिए नारद संजीवनी का कार्य कर रहा था। नारद पर अब अपडेट हर घन्टे में हो रहे थे, लेकिन एक दिन अचानक। पंकज नरुला ने खबर की, कि उनके होस्ट ने हाथ खड़े कर दिया है, चूंकि हम शेयर्ड होस्टिंग पर थे और नारद जैसे प्रोजेक्ट को ज्यादा रिसोर्सेज की जरुरत पड़ती थी, इसलिए होस्टिंग वालों ने हाथ खड़े कर दिए थे। इस कारण नारद को हमें अस्थाई रुप से बन्द करना पड़ा। लेकिन नारद जैसे प्रोजेक्ट का बन्द होना, हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए सबसे बड़ी घटना था। चिट्ठाकारों के नारद के प्रति विश्वास, प्यार और स्नेह को देखते हुए इसे डेडीकेटेड होस्टिंग पर ले जाना लाजमी हो गया। नारद के बन्द होने से मानो हिन्दी चिट्ठाकारों को आक्सीजन मिलनी बन्द हो गयी। हर तरफ़ हड़कम्प मच गया, कई साथियो ने अस्थाई इन्तजाम किए और नारद के लिए डेडीकेटेड होस्ट की खोज शुरु हुई।

अब चूंकि हमें डेडीकेटेड होस्टिंग पर जाना जो, सचमुच काफी महंगा आप्शन था, इसलिए सभी लोगों से सहयोग की अपील की गयी। सभी ने अपने अपने स्तर पर नारद के लिए सहयोग दिया। किसी ने तकनीकी सहयोग किया, किसी ने आर्थिक। हमारे पास कुछ प्रायोजकों के प्रस्ताव भी आए, लेकिन हमने नारद प्रोजेक्ट को विज्ञापन मुक्त रखने का प्रण किया हुआ था, इसलिए हमने सामूहिक सहयोग वाले मॉडल पर जाना बेहतर समझा। लेकिन हमने यह निश्चय किया कि हम नारद के लिए सहयोग सिर्फ़ हिन्दी चिट्ठाकारों से ही लेंगे वो भी सिर्फ़ उनसे जो आत्मनिर्भर हों। मुझे याद है कुछ साथियों के भावपूर्ण पत्र, जो नारद के लिए आर्थिक सहयोग के लिए आगे आए। कई साथियों के सहयोग के प्रस्ताव को सिर्फ़ इसलिए खारिज किया गया, क्योंकि वे या तो गृहणी थी या छात्र। लेकिन नारद के प्रति उनके प्रेम को देखकर हमें बहुत अच्छा लगा। हम आज भी अपने सभी साथियों के सहयोग के आभारी है। ये अपने आप में एक अनूठा प्रयोग था, इस पर लिखने बैठूंगा तो पन्ने के पन्ने भर जाएंगे। मेरे विचार से हिन्दी चिट्ठाकारी के इतिहास मे सामूहिक प्रयास की यह सबसे बड़ी घटना थी, नारद से लगाव और लोगों का उत्साह देखकर हमे नया जोश मिला और हम दोगुने उत्साह से नारद को दोबारा खड़ा करने मे जुट गए।

नारद के लिए आर्थिक सहयोग का इन्तज़ाम तो हो गया था, अब नारद के लिए एक तकनीकी टीम बनायी गयी जो आज भी बखूबी नारद को सम्भाल रही है। नारद के लिए होस्ट की पसन्द पंकज, ईस्वामी, अमित और मैने बहुत सोच विचार के बाद किया। हमे पिछली गलतियों से सबक लेना था, लेकिन चूंकि पैसा सामूहिक था, इसलिए हमने डेडीकेटेड होस्टिंग पर ना जाकर वर्चुअल प्राइवेट सर्वर पर जाने का निश्चय किया। ये डेडीकेटेड और शेयर्ड के बीच की चीज थी। ज्यादा तकनीकी बातें करके आपको पकाऊंगा नही। इस तरह से नारद की वापसी हुई।

नारद अपने पैरों पर खड़ा हो गया था, कुछ नए बदलाव भी किए गए, कई नए प्रयोग किए गए। कुछ लोगों ने पसन्द किए कुछ लोगों ने नापसन्द। अभी हमारे पास तकनीकी लोगों की कमी थी, निशान्त ने आगे बढकर तकनीकी सहायता देने का प्रस्ताव किया, जिसे नारद टीम ने सोचविचार करने के बाद स्वीकार कर लिया। इसी तरह विनोद मिश्रा भी एक तकनीकी उलझन के बीच मे मिले, विचार मिले, तो वे भी आज तकनीकी टीम का हिस्सा है। इन दोनो साथियों के आने से टीम को काफी फायदा हुआ है। जहाँ निशान्त वैब एडमिन का काम देखते है, वही विनोद मिश्रा पीएचपी वाले काम को बखूबी अंजाम दे रहे है। पुराने लोगों और नए साथियों की यह टीम नारद को दिन रात एक करके चालू रखे हुए है। नारद पर दिनोदिन बढने वाले हिट्स से यह लोकप्रिय साइट बन गयी है। नारद पर हिट्स के सम्बंध मे मै कोई झूठे क्लेम नही करता, नारद पर आवाजाही का सारा डाटा सार्वजनिक है। गूगल की साइट रेटिंग वास्तव में लोकप्रियता का एक अच्छा पैमाना है। नारद की साइट की गूगल रेटिंग अब पाँच (5/10) है, इसका मतलब है कि नारद की साइट अगर विज्ञापन लगाना चाहे तो विज्ञापन दाता इसे हाथों हाथ लेंगे। लेकिन शायद अभी इस पर हम एक मत नही है। खैर समय आने पर देखा जाएगा। नारद के लिए हमे तकनीकी लोगों की आज भी आवश्यकता है, आप यदि तकनीकी, ग्राफिक्स कौशल मे तेज है तो नारद को आपकी जरुरत है। यदि आप तकनीकी सहयोग करना चाहते है तो हमे अपने तकनीकी कौशल की जानकारी के साथ सम्पर्क करिए।

ramayan इस बीच कुछ अन्य सामूहिक प्रयोग भी हुए, जैसे रामचरित मानस का वैब पर प्रकाशन। मैने सुन्दर काण्ड को टाइप करके रामचरित मानस की पुरानी साइट पर डाला था, लेकिन बाद में रवि भाई और अनूप भाई ने इस प्रयास को आगे बढाया और आज सम्पूर्ण रामचरित मानस इन्टरनैट पर उपलब्ध है। आप भी इस साइट का, अपने अपने ब्लॉग पर प्रचार करिए। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ ले सकें। आपके सुझाव भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है, हमे इसका इन्तज़ार रहेगा।

ये तो रहा मेरी नज़र से हिन्दी ब्लॉगिंग का अतीत। हो सकता है कुछ नाम छूट गए हो, या कुछ बाते याद नही रही हो। यदि ऐसा कुछ हो तो मुझे प्लीज इमेल/टिप्पणी मे लिखकर बता दीजिएगा। मै चाहूंगा कि सभी बातें एक जगह पर दिखें। उम्मीद करता हूँ आप लोगों ने इस अतीत की यादों को पसन्द किया होगा। चिट्ठाकारी का दीपक हम लोगों ने जलाया था, उसे जलाए रखने के लिए ना जाने कितने आंधी तूफानों का सामना हमने किया था, लेकिन इस दीपक का उजाला तभी फैलेगा जब नए चिट्ठाकार उसी भावना से इसको जलाए रखने के लिए तैयार रहेंगे। भविष्य तो युवा कंधो पर ही रहेगा।

हम पुराने चिट्ठाकारों ने बहुत प्यार, मोहब्बत और आपसी भाईचारे इस हिन्दी चिट्ठाजगत के माहौल को बनाया है। इतने सौहार्दपूर्ण तरीके और व्यवस्थित तरीके से सबको एक सूत्र मे जोड़ने की कोशिश की है, हम इसमे सफ़ल भी रहे है, लेकिन आजकल कुछ नासमझ लोग, माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे है, शायद सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में, मेरा सभी चिट्ठाकारों से निवेदन है कि किसी भी प्रकार के कुचक्र मे ना फंसे। अपने विवेक से निर्णय लें। मुझे पता है कि कुछ लोग नारद पर भी इल्जाम लगा रहे है, लेकिन आप अपने विवेक से सोचें क्या नारद पर इल्ज़ाम लगाना कोई समझदारी है? नारद का काम सिर्फ़ ब्लॉग का कन्टेन्ट दिखाना है, उसको पढना नही, हमारा प्रतिदावा देखें। लेकिन ये लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना उल्लू सीधा करना चाहते है, नारद पर हमने नियमावली बना रखी है और हम उसी के अनुसार कार्य करते है। जिस दिन कोई भी ब्लॉग नियमावली के खिलाफ़ जाएगा, हम उचित निर्णय लेंगे। निर्णय लेने मे हम ब्लॉगर की वरिष्ठता और कनिष्ठता को भी नही देखते, सामूहिक स्थल पर संयत व्यवहार करना सबकी जिम्मेदारी है। इन्ही बातों के साथ, आपको ब्लॉगिंग करते रहने की प्रेरणा के साथ, अपना लेख समाप्त करता हूँ। पढते रहिए मेरा पन्ना…..नही नही आप सबका पन्ना।

23 responses to “अतीत के झरोखे से – ४”

  1. अफ़लातून Avatar

    उल्लुओं का उल्लू सीधा न होगा । इस दस्तावेज की प्रस्तुति के लिए फिर से बधाई । चारों भाग एक साथ करें ताकि एक कड़ी अपने चिट्ठे पर दे सकें।

  2. आशीष Avatar

    तकनीकी टीम मे मै काम कर सकता हूं। AJAX,JavaScript पर हाथ मजबूत है ! PHP ज्यादा नही आती लेकिन काम कर सकता हूं। मेरे लिये कोई भी काम हो तो बताइये !

  3. priya ranjan jha Avatar

    badhiya jitu bhai. narad ki yeh yatra karane ke liye dhanyavaad.

  4. masijeevi Avatar

    आपके इस प्रयास के लिए साधुवाद। कई रिक्‍त स्‍थान इस लेखन से भर गए हैं।

    दूसरी ओर साहित्‍येतिहास वाली दृष्टि से देखता हूँ (हॉं वो कमबख्‍त पीएच.डी् 🙁 इसी में है) तो इच्‍छा होती है कि कोई बताए कि इस सारे दौर में लेखन और भाषा के, विषय के, ट्रेंड क्‍या रहे।
    फिर से शुक्रिया

  5. जगदीश भाटिया Avatar

    यह बात सही है कि नारद के पीछे की भावना को सभी लोग नहीं समझ सकते। जब नारद को बुरा भला कहा जाता है तो हमें बहुत बुरा लगता है। अपना उल्लू जो लोग सीधा कर रहे हैं नारद को उनको पहचान कर चेता देना चाहिये और न मानें तो बाहर का रास्ता दिखायें। इस तरह के खराब माहौल से बचने का रास्ता निकालना चाहिये।

  6. kakesh Avatar

    भाई सच में मजा आ गया . लेकिन लगा कि थोड़ा और लिखते तो अच्छा होता . तकनीकी लोगों के लिये कोई और लेख लिखने का इरादा है क्या . यदि लिख सकें तो बहुत अच्छा हो . एक बार मैं भी अपना विश्वास जमा लूं तो फिर मैं भी जुड़ना चाहुंगा आपकी टीम में . पूरी टीम को बधाई.

  7. संजय बेंगानी Avatar
    संजय बेंगानी

    चारो भागो को एक साथ कहीं रखे तथा वर्तमान में घटीत हो रही घटनाओं की कडवाहट उसमे से निकाल दें.

    जब अनाम टिप्पणीयों में अनर्गल पढ़ते है तो दुःख होता है.

  8. अतुल शर्मा Avatar

    अच्‍छी रही इतिहास यात्रा। गत वर्ष ब्लॉगर पर प्रतिबंध और फिर लोगों का ब्लॉगर से वर्डप्रेस डॉट कॉप शिफ्ट होना भी एक घटना रही। आप उचित समझें तो इस बारे में बता सकते हैं। और भी सुझाव आएँगे, हो सकता है इन लेखों में कोई परिवर्तन, संपादन हो। जब सब कुछ हो जाए तो इन लेखों को संकलित कर कहीं पर (शायद सवर्ज्ञ) रख दिया जाना अच्छा होगा। वैसे आप बेहतर जानते हैं क्या करना है।

  9. pankaj बेंगाणी Avatar
    pankaj बेंगाणी

    अथ: श्री हिन्दी चिट्ठायात्रा कथा समाप्तम:

    धन्यवाद
    .

    🙂

    बहुत मेहनत से लिखी है. योग्य स्थान पर लगाया जाए, ताकि सनद रहे.

  10. सृजन शिल्पी Avatar

    हिन्दी चिट्ठाकारी के अब तक के सफर में हासिल हुई उपलब्धियों को अच्छी तरह से समेटा आपने। 21 अप्रैल, 2007 को हिन्दी चिट्ठाकारी के चार वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। चिट्ठा जगत के अन्य महारथियों को भी इस अवसर पर अपने सफर पर एक विहंगम दृष्टि डालते हुए उससे सबको परिचित कराना चाहिए।

    आपकी यह लेख-श्रृंखला पुरानी स्मृतियों की याद दिलाने वाली एक धरोहर के रूप में है।

  11. Naresh (Pryas) Avatar

    थोडा बहुत काम फोटोशाप व एचटीएमएल का हम भी कर लेते हैं। अगर मैं थोडा समय नारद को दे पाया तो अपने आप को धन्य समझुंगा।

  12. Ramashankar Sharma Avatar
    Ramashankar Sharma

    नारद की इतिहास गाथा जानकारी प्रसन्नता हुई. अब नारद मुझे अपना-अपना सा लगने लगा है.

  13. सुनील Avatar
    सुनील

    प्रिय जीतू, बहुत अच्छा लिखा है. आज बहुत दिनों के बाद नारद पर लौटा हूँ, क्योंकि इन दिनों में बहुत व्यस्त था. बीच में एक दिन कुछ पढ़ने की कोशिश की तो बहस का रोष देख कर आगे पढ़ने का मन ही नहीं किया. पर तुम्हारा लेख पढ़ कर शुरु के वह दिन याद आये एक दूसरे से रिश्ता सा बन गया था और जो आज मन में है.

  14. प्रियंकर Avatar

    जीतू भाई ,

    इतने कम समय में इतनी जबर्दस्त उपलब्धियों तथा सद्भाव और साझेदारी के इतने मर्मस्पर्शी अनुभवों के बाद कड़वाहट या ‘अपसेट’ होने का कोई कारण नहीं होना चाहिए .

    कभी-कभी तो मुझे यह सोच कर ही रोमांच होता है कि नेट पर हिंदी के शुरुआती कर्णधारों में पंकज नरुला, जितेन्द्र चौधरी और देबाशीष चक्रवर्ती के होने का भी एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है हिंदी की सार्वदेशिकता और स्वीकार्यता के संदर्भ में . मूलतः पंजाबी, सिन्धी और बांग्ला मातृभाषा वाले परिवारों के इन बच्चों का हिंदी से कैसा प्यारा नेह का नाता है कि वे इसे मुकुटमणि बनाए हुए हैं . उसके भविष्य को लेकर चिंतनशील रहते हैं . उसे मां का मान दे रहे हैं .

    इसका एक प्रतीकात्मक अभिप्राय यह भी है कि अब हिंदी पर हिंदी पट्टी के चुटियाधारियों का एकाधिकार खत्म होने को हैं . आंकड़े कहते हैं कि अगले दस-बीस वर्षों में दूसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखने वाले विभाषियों की संख्या मूल हिंदीभाषियों से ज्यादा होगी . और तब एक नये किस्म की हिंदी अपने नये रूपाकार और तेवर के साथ आपके सामने होगी .

    और हिंदी के भविष्य की इस बुलंद इमारत की नींव में लगने वाली बहुत सी ईंटें प्रदान करने का गौरव नारद को होगा . शिलान्यास तो उसने कर ही दिया है .

  15. eswami Avatar

    एक जरूरी बात .. मेरी यादों के झरोखे से ..

    हमें रातों रात अनुदान इकट्ठा करना था, पंकज नरूला को मैने फ़ोन किया, ई-चर्चा वाले मित्र सुनीत को किया, दोनो की बात करवाई, पंकज को पूरी जानकारी मिली – उन्होंने अमेजान पर अकाऊंट खोला और जो लोग क्रेडिट कार्ड धारी नहीं भी थे उन्होंने रातो रात क्रेडिट कार्ड धारियों के माध्यम से दुनिया भर से सहायता भेजी.

    मेरी पत्नी हिंदी ब्लागिंग को मेरा खब्त मानती हैं, समय नष्ट करने का बेहतरीन साधन! जब देखते ही देखते आंकडा १००० डालर के पार पहूंच गया मैने उनकी आंखें खुशी के मारे नम देखीं! “देयर इज़ अ मेथड टू यू गाईज़ मेडनेस!” हां कुछ अलग कर दिया हमनें – सर्टिफ़ाईड पागलों वाला काम! 🙂

    आज अगर पाठक/ब्लागर किन्ही तरह के ब्लाग्स के चलते खिन्न हैं तो मेरा बस ये कहना है की इस प्रकार की समस्याओं के भी तकनीकी समाधान हैं!

    संयम से काम लें, कौशल वाले हमसे जुडें, और बाकी हमें अपना काम करने का समय दें! बस और क्या! 🙂

  16. अनुराग Avatar

    आपकी मेहनत ने वास्तव में मुग्ध कर दिया।

  17. समीर लाल Avatar

    बहुत बढ़िया लगा संपूर्ण वृतांत पढ़कर. बहुत सुंदरता से लिखा है, शाबास!!

  18. श्रीश शर्मा 'ई-पंडित' Avatar

    बहुत खूब जीतू भाई। काफी काम का मैटीरियल मिल गया। इसमें से बहुत कुछ सर्वज्ञ के लेखों में काम आएगा।

    आपसे अनुरोध है कि आगे भी इस तरह के ऐतिहासिक लेख लिखते रहें ताकि सभी नए चिट्ठाकारों को मालूम हो कि हिन्दी की इस दुनिया को बसाने में कितनी मेहनत की गई है।

  19. Tarun Avatar

    एक काम तो पता है उसके अलावा किसी और काम आ सकें तो हम भी बकौल जीतू भाई एक मेल की ही दूरी पर हैं 😉

  20. डा प्रभात टन्डन Avatar

    बहुत ही अच्छा लगा इस यात्रा को पढकर . सच कहूं तो अजीब सी गुदगुदी होती है यह सोचकर कि हमारी यह यात्रा अपनी जमीन और अपनी मिट्टी के साथ है.

    नारद की साइट की गूगल रेटिंग अब पाँच (5/10) है, इसका मतलब है कि नारद की साइट अगर विज्ञापन लगाना चाहे तो विज्ञापन दाता इसे हाथों हाथ लेंगे।

    मुझे लगता है कि इस संदर्भ मे आप positively सोचें, विज्ञापन क्यों न लें, आखिर साईट चलाने के लिये यह विज्ञापन ऊर्जा का ही काम करेगें. लेकिन इस बात का अवशय ध्यान रखें कि जो स्थिति आज हिन्दी अखबारों की है जिनमे हिन्दी के विज्ञापन कम और अंग्रेजी के विज्ञापन अधिक दिखते हैं , वह उत्पन्न न होने पाये .

  21. राजीव Avatar

    जीतू जी, नारद, अक्षरग्राम, परिचर्चा आदि तो हिन्दी चिट्ठाकारी में मील के पत्थर हैं। इनकी उपयोगिता और इनके द्वारा चिट्ठा लेखकों को होने वाला प्रोत्साहन सर्वविदित है ही। इनके इतिहास की प्रस्तुति बहुत रोचक लगी!

  22. अनूप शुक्ला Avatar

    हां , बहुत अच्छा लगा इसे फिर से पढ़ना जिसे होते हमने देखा है!

  23. PRAMENDRA PRATAP SIN Avatar

    अच्‍छा लिखा है।

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