देर है अन्धेर नही

कल दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले ने मेरे साथ साथ उन लाखो लोगों की आँखो मे चमक ला दी है, जो भारत की न्याय व्यवस्था मे विश्वास रखते है। इस फैसले ने दिखा दिया है भारतीय न्याय व्यवस्था मे देर है अन्धेर नही। दरअसल प्रियदर्शनी मट्टू केस मे आरोपी संतोष सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गयी। प्रियदर्शनी मट्टू केस वैसे ही मीडिया मे सुर्खियों मे छाया हुआ था, इस मुद्दे पर आम जनता का ध्यान आकृष्ट करने मे मीडिया विशेषकर एनडीटीवी का योगदान था।

priyadarshini१९९६ मे दिल्ली मे २३ वर्ष की प्रियदर्शनी कानून की पढाई कर रही थी संतोष सिंह जो एक भूतपूर्व आइ पी एस अफसर का बेटा है उसने प्रियदर्शनी मट्टू की बलात्कार के बाद बेरहमी से हत्या कर दी थी। संतोष सिंह ने प्रियदर्शनी की हैलमेट से पीट पीट कर बेरहमी से हत्या की थी। निचली अदालत ने सबूतों के अभाव मे उसे बरी कर दिया था। लेकिन न्यायालय की एक टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण थी, जिसमे कहा गया था, “हमे पता है कि संतोष सिंह ने हत्या की है, लेकिन सबूतों के अभाव मे उसे छोड़ा जा रहा है।” इस टिप्पणी ने प्रियदर्शनी के परिवार को मामला हाईकोर्ट मे ले जाने की प्रेरणा दी। बाद मे मीडिया ने भी उनका साथ दिया और आज नतीजा सबके सामने है। इस केस से सम्बंधित वीडियो यहाँ देखिए।

लेकिन ऐसे ही कितने फैसले है, जो अभी भी निर्णय की राह देख रहे है। क्या हम उन्हे भी समूचित न्याय दिला पाएंगे? क्या गारंटी है कि संतोष सिंह की फाँसी की माफ करने के समर्थन मे कोई राजनीतिक पार्टी नही उतरेगी?

5 responses to “देर है अन्धेर नही”

  1. SHUAIB Avatar

    ऐसे मौके पर आप, मैं और दूसरे लाखों लोगों की आंखों मे चमक आना ये एक फित्री बात है जीतू जी। ये अलग बात है कि दस वर्षों बाद इनसाफ तो मिला और खूनी को सज़ा भी सुनादी – दस वर्षों तक खूनी को आज़ाद छोडने वाला भी कानून ही है बहाना सिर्फ सबूतों का.

  2. संजय बेंगाणी Avatar

    बेशक यह एक सुखद फैसला हैं, जो न्यायव्यवस्था में हमारा विश्वास जगाता हैं. मिडिया की भी इस मामले में सराहनीय भुमिका रही हैं. शाबास मिडिया.
    इसबार किसी राजनीतिक पार्टी का या मानवतावादीयों का मैदान में उतरने की सम्भावना नहीं है क्योंकि बँदा अल्पसखंयक नहीं है.

  3. सृजन शिल्पी Avatar

    यह फैसला निस्संदेह आशा का संचार करता है। लेकिन इससे यह बात भी जाहिर होती है कि न्याय के प्रति संवेदनशील बनने के लिए न्यायपालिका मीडिया की मोहताज है। न्यायपालिका उन हजारों संगीन मामलों के प्रति कब संवेदनशील होगी जिनको उठाया जाना मीडिया के लिए कारोबार की दृष्टि से लाभकारी नहीं है?

  4. अनुनाद Avatar
    अनुनाद

    ‘मुद्दई चुस्त गवाह सुस्त’ की लोकोक्ति वर्तमान भारतीय न्यायव्यवस्था पर सबसे फ़िट बैठती है। भारत में जितना नियम-कानून की अवहेलना और भ्रटाचार का बोलबाला है, उसी अनुपात में न्यायपालिका की सुस्ती अपनी चरम सीमा पर है; जबकि होना उल्टा चाहिये था।

  5. समीर लाल Avatar

    चलो, कहीं तो कुछ आशा की किरण बाकी है.

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