फ्रेश पोस्ट, डायरेक्ट इन्डिया से
नोटःइस पोस्ट मे हिन्दी व्याकरण की गलितियों को नजरअन्दाज किया जाय, मुझे पता है कैसे मैने हिन्दी मे लिखा है.
अब भई जैसे ही श्रीमती जी का आदेश हुआ हमने भी भारत यात्रा के लिये टिकट कटवा ली, अब यहाँ से फ्लाइट रात को साढे दस बजे चलती है, लेकिन उत्साह इतना जबरदस्त था कि हम शाम छः बजे से ही अपना बोरिया बिस्तर गोल करके अपने मित्र का इन्तजार करने लगे, जिन्हे हमे एयरपोर्ट पर छोड़ना था, वहाँ पर जाकर सबसे पहले अपना लगेज चैक इन करवाया फिर तो हम फुल्ली फालतू, अब करे भी तो क्या करें, हमारे मित्र महाशय की श्रीमती जी भी, हमारी श्रीमतीजी के साथ इन्डिया प्रस्थान कर गयीं थी तो वे भी पंकज महाराज की भाषा मे छड़ें थे, अब करे भी तो क्या करें, सबसे पहले तो स्टारबक्स कैफे मे बैठा गया, पाँच डालर की काफी पी गयी, जो गली मोहल्ले की चाय काफी के सामने कंही भी नही टिकती थी, फिर भी लोग वहाँ पर बैठ कर काफी पीकर और अपने वाईफाई लैपटाप का प्रदर्शन करते रहते है, स्टारबक्स वाले भी यस सर! कह कह कर उनको इनकरेज करते रहते है. हमारे यहाँ कुवैत मे स्टारबक्स कैफे हर गली मोहल्ले मे मिल जायेंगे, ठीक वैसे जैसे हमारी भारतीय सड़कों हर चौराहे पर नत्थू हलवाई की दुकान. खैर जनाब! हमारा क्या, काफी पीने वाले खुश, पिलाने वाले खुश, हम क्यों खांमखां पंगा लेते फिरे.
खैर जनाब, जैसे ही हमारी काफी खत्म हुई, हमसे वहाँ बैठा नही गया, हम दोनो फिर निकल पड़े, एयरपोर्ट मे दुकानो पर विन्डो शापिंग करने, क्योंकि लेना देना तो कुछ था नही, बस जो सामान पहले कभी खरीदा था, उसी का दाम पता कर रहे थे और टाइम पास कर रहे थे. थोड़ी देर मे सारे दुकानदार भी समझगय कि ये टाइमपास कस्टमर है. खैर जनाब, हमारी फ्लाइट की एनाउन्समेन्ट भी हो गयी, और हमने अपने मित्र से विदा ली और इमीग्रेशन से होते हुए अन्दर प्रस्थान कर गये. अभी कहानी यंही खत्म नही हुई, परेशानियाँ तो यहाँ शुरु हुई,
हम फ्लाइट वाले गेट की तरफ पहुँचे और आखिरी लाउन्ज मे फ्लाइट मे दाखिल होने का इन्तजार करते रहे, फ्लाइट का टाइम हो चुका था, लोगो मे बैचेनी बढने लगी, जाहिर था, बैचेनी फ्लाइट मे जाने की बल्कि डिनर ना मिलने की वजह से थी, इन लोगो मे हमारा भी शुमार था. खैर जनाब, बताया गया, कि किसी तकनीकी खराबी की वजह से हवाई जहाज आधे घन्टे, फिर एक घन्टे और फिर दो घन्टे के लिये लेट हो गया. हमारे सामने एक कनाडाई जोड़ा बैठा था, जो पिछले २० घन्टों से सफर कर रहे थे और दिल्ली जा रहे थे, उनकी हालत देखकर मुझे अपना गम बहुत कम लगने लगा. उनके पास ही एक बुजर्ग भारतीय थे, जो कोई नेता टाइप दिख रहे थे, क्योंकि उन्होने अगल बगल वालों पर इम्प्रेशन जमाने के लिये, अपने कुवैती और भारतीय सरकार के अपने सम्बंधो को बता रहे थे और अपनी शान मे कसीदे पर कसीदे पढे जा रहे थे. वैसे नेता नाम के प्राणी मे मेरे को बहुत चिढ है, लेकिन मैने अपने कन्ट्रोल किया और अपनी किताब मे खोया रहा था. अन्ततः कुवैत एयरवेज ने फ्लाइट के कैन्सिल होने की घोषणा कर दी.मै ऐसी परिस्थतियाँ झेल चुका था, इसलिये सबसे पहले तो मैने दिल्ली मे होटल वालों को इन्फार्म किया और बताया कि फ्लाइट के एराइवल का पता करके ही बन्दा भेजे, नही बेचारा ड्राइवर सुबह सुबह चार बजे, मेरे को गालियाँ देता हुआ आयेगा और गालियाँ देता हुआ वापस चला जायेगा.
अब जद्दोजहद शुरु होती है, फ्लाइट लेट होने की वजह से हुए नुकसान की भरपाई की, सबसे पहले तो कुवैत एयरवेज वालों ने सबको जूस पिलाया, जिसमे छीना छपटी हुई, फिर लट्ठमार तरीके माफी मांगी गयी और अबको ट्रान्सफर काउन्टर पर पहुँचने की हिदायत दी. जूस वाले वाक्ये को देखने के पश्चात हमने अन्दाजा लगा लिया था कि वहाँ क्या नजारा होने वाला है, इसलिये हमने पतली गली से, एक एयरहोस्टेज को साधा और उनके बास से मिलने पहुँच गये, बास नाराज हो रहे थे कि कैसे एक इन्डियन सबको बाइपास करके मेरे कमरे मे आया, जब मैने परिचय दिया और थोड़ी गोलियाँ टिकाई की मेरी कनैक्टिंग फ्लाइट मिस हो गयी वगैरहा वगैरहा, तो फिर उसने बड़ी मुशकिल से मेरे को होटल शेरटन का बाउचर टिकाया, और रात भर हम होटल शेरटन के मेहमान हुए. आप कहेंगे तो अच्छा हुआ, अमाँ खाक अच्छा हुआ, रात के खाने मे सिर्फ सैन्डविच मिले, वो भी रात को तीन बजे,धर्म भ्रष्ट हुआ सो अलग, ना जाने किस चीज के थे. अब हम तो झेल गये ना, है कि नही. चलो ये भी ठीक था, आगे सुनिये, फ्लाइट सुबह साढे नौ बजे जानी थी, इसलिये सात बजे होटल वालों ने उठा दिया, हम ने हचक के नाश्ता किया, शेरटन का नाश्ता बेहतरीन होता है, लन्च और डिनर के आधे आइटम तो झिलते ही नही. अब जनाब हम जैसे ही नीचे उतरे और अपने एयरबैग को उठाने के लिये झुके, बस वहीं काम लग गया, अपने दाँये घुटने की नस खिंच गयी, और हम खड़े रहने लायक भी नही रहे. अब होटल वालों ने जैसे तैसे हमे टैक्सी मे डाला और एयरपोर्ट पर रवाना किया, वहाँ तक पहुँचते पहुँचते तो हालात और खराब हो गये, दर्द के मारे जान निकल रही थी, ये तो भला तो एक झारखन्डी भाई को जिसने व्हीलचेयर वालों को इन्फार्म किया, और हमे अच्छे खासे बन्दे से रोगी हो गये. हाँ एक काम तो हो गया, हमे हर जगह प्राथमिकता मिलती गयी, हम सीधे एयरपोर्ट हास्पिटल ले जाये गये और पट्टी वगैरहा की गयी और कहाँ गया कि या तो सफर मत करो या फिर व्हील चेयर पर ही करो. अब मरता क्या ना करता, माननी पड़ी बात, और हवाई जहाज तक व्हील चेयर पर रहे. फ्लाइट मे नेताजी फिर मिल गये और तब पता चला कि उन्होने रात एयरपोर्ट पर जागते जागते बितायी, उनके सारे के सारे कान्टेक्टस धरे के धरे रह गये थे. और हाँ कनाडाई जोड़ा भी वहाँ था, वे बेचारे भी रात भर एयरपोर्ट पर रहे, उन्होने बार बार कुवैत एयरवेज से कभी ना सफर करने की कसम खायी. और हम, मजबूर है यार, पैसे नही मिलते, टिकट मिलती है, हमे तो झेलना ही पड़ेगा इस एयरलाइन्स को. और इस तरह से हम हिन्दुस्तां की सरज़मी पर व्हीलचेयर पर उतरे, लेकिन इसका फायदा भी रहा, इस बार इमीग्रेशन वाले ने हमे टेड़ी नजर से नही देखा, और कस्टम वाला खुद रास्ते से हट गया. और बाहरी गेट तक छोड़ने आया.वैसे आइडिया अच्छा है.
आगे की कहानी अगली बार और हाँ फोटो वगैरहा उधार रहे, एक साथ दिखाये जायेंगे. तब तक पढते रहिये मेरा पन्ना
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