ए लो,
ये भी कोई बात हुई?
पाकिस्तान मे कापीराइट अधिकारियों ने कराची और लाहौर की कुछ दुकानों मे छापा मारकर लाखों की संख्या मे हिन्दी फिल्मों की पायरेटेड डीवीडी बरामद की है. इसका मतलब है कि आने वाले समय मे खाड़ी देशों मे पायरेटेड डीवीडी की उपलब्धता कम होने वाली है.अभी कुछ समय पाकिस्तान मे ये डीवीडी खुले आम बिकती थी और पाकिस्तान के कापीराइट एक्ट के अन्तर्गत भारतीय फिल्मों की सीडी,डीवीडी इस कानून के दायरे मे नही आते, है ना मजेदार बात. दरअसल भारत और पाकिस्तान के सर्द गर्म रिश्तो के चलते, पाकिस्तान ने भारतीय फिल्मों को कापीराइट के दायरे मे नही रखा था, मतलब तो बहुत साफ था, भारतीय फिल्म उद्योग को किसी भी तरह का नुकसान, एक तरह से पाकिस्तान का फायदा.
खैर अब अन्तर्राष्ट्रीय कानूनो के तहत, पाकिस्तान को इन डीवीडी विक्रेताओ के यहाँ छापामारी करनी तो पड़ी है, लेकिन मुझे नही लगता कि ये कुछ ज्यादा दिन तक चलेगी.थोड़े दिनो बाद फिर वही पायरेसी, वही ढाक के तीन पात. कारण, क्योंकि पाकिस्तान की जनता का मनोरंजन के लिये यही एकमात्र विश्वसनीय साधन है. पाकिस्तान मे हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता का ये आलम है कि शादी मे बजाये जाने वाले संगीत मे भी हिन्दी फिल्मों की धुनो का बोलबाला रहता है. साथ ही वहाँ के विज्ञापनो मे हिन्दी गानों की पैरोडियों का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है.और तो और हिन्दी फिल्मो के पायरेटेड कारोबार मे हजारो लोगो की रोजी रोटी निकलती है, ये सब रोक पाना पाकिस्तान के सरकार के अब बस मे नही है, अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते है, लेकिन अब क्या करें हुक्म तो हुक्म है, बजाना ही पड़ता है. देखें ऊँट किस करवट बैठता है.
हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता का तो ये आलम है कि पाकिस्तान की फिल्मों को कोई देखने ही नही जाता, इक्का दुक्का फिल्मों को छोड़कर, बाकी फिल्मे तो फ्लाप की श्रेणी मे ही आती है. पाकिस्तान के खस्ताहाल सिनेमा हाल(ऊपर की इमेज देखें) इस बात की गवाही देते है. और सरकार है कि हिन्दी फिल्मो को सिनेमा हाल पर चलने नही देती. इसलिये ज्यादातर सिनेमाहाल बन्द हो रहे है.देखा जाय तो पाकिस्तान का फिल्म उद्योग पूरी तरह से बरबादी के कगार पर है.इसे कहते है कि दूसरे के लिये गड्डा खोदने वाला खुद ही उस गड्डे मे गिरता है.
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