हम तो हैं परदेस में…..

हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चांद

जिन आंखों में काजल बन कर तैरी काली रात हो
उन आंखों में आंसू का एक कतरा होगा चांद

रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर हो
आंगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चांद

चांद बिना हर दिन यूं बीता जैसे युग बीतें हो
मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चांद

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दिल मे उजले काग़ज पर हम कैसा गीत लिखें
बोलो तुम को गैर लिखें या अपना मीत लिखें

नीले अम्बर की अंगनाई में तारों के फूल
मेरे प्यासे होंठों पर हैं अंगारों के फूल
इन फूलों को आख़िर अपनी हार या जीत लिखें

कोई पुराना सपना दे दो और कुछ मीठे बोल
लेकर हम निकले हैं अपनी आंखों के कश-कोल
हम बंजारे प्रीत के मारे क्या संगीत लिखें

शाम खड़ी है एक चमेली के प्याले में शबनम
जमुना जी की उंगली पकड़े खेल रहा है मधुबन
ऐसे में गंगा जल से राधा की प्रीत लिखें

-डा.राही मासूम रजा

2 responses to “हम तो हैं परदेस में…..”

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  2. gerald rudolph ford

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