अभी पिछले दिनों, मैं इन्टरनेट पर एम् टीवी कोक स्टूडियो देख/सुन रहा था. एम् टीवी कोक स्टूडियो ढेर सारे अच्छे कलाकारों के साथ रिकॉर्डिंग करता है. यदि आपको विभिन्न भाषाओँ में ढेर सारे अच्छे कलाकारों को सुनना है तो कोक स्टूडियो सही स्थान है. मेरे को कोक स्टूडियो और एम् टीवी अन-प्लुगगड अच्छा लगता है, क्योंकि इसमें कलाकार अपने पूरे मूड में होते है और वाद्य यंत्रो का शोर भी कम होता है, फिर ऊपर से फ्युजन का अच्छा प्रयोग भी देखने को मिलता है. मुझे कोक स्टूडियो में एक गीत बहुत पसंद आया, आप सभी से शेयर करना चाहूँगा. इसको आप सुकून से सुनियेगा, आपको अच्छा लगेगा. इसको लिखा और गाया है, हमारे पसंदीदा पियूष मिश्रा ने, वही गैंग ऑफ वासेपुर वाले(पूरी फिल्म में आप इनकी आवाज को सुन सकते है), इन्होने फिल्म में एक महत्वपूर्ण रोल भी निभाया था.
हसना एक ऐसा गीत है जो आपके सामने भारत और पाकिस्तान के विभाजन की यादों को दोबारा ताज़ा कर देगा. विभाजन के पहले हसना और जावेद दोनों एक हो मोहल्ले में रहते थे और एक दुसरे से बेहद प्यार करते थे. विभाजन के बाद, हसना पाकिस्तान में रह गयी और जावेद लखनऊ में आकर बस गए. काफी सालों बाद जावेद ने हसना को एक खत लिखा, पेश है जावेद का खत हसना के नाम :
लाहौर के उस
पहले जिले के
दो परगना में पहुंचे
रेशम गली के
दूजे कूचे के
चौथे मकां में पहुंचे
और कहते हैं जिसको
दूजा मुल्क उस
पाकिस्तां में पहुंचे
लिखता हूँ ख़त में
हिन्दोस्तां से
पहलू-ए हुसना पहुंचे
ओ हुसना
मैं तो हूँ बैठा
ओ हुसना मेरी
यादों पुरानी में खोया
पल-पल को गिनता
पल-पल को चुनता
बीती कहानी में खोया
पत्ते जब झड़ते
हिन्दोस्तां में
यादें तुम्हारी ये बोलें
होता उजाला हिन्दोस्तां में
बातें तुम्हारी ये बोलें
ओ हुसना मेरी
ये तो बता दो
होता है, ऐसा क्या
उस गुलिस्तां में
रहती हो नन्हीं कबूतर सी
गुमसुम जहाँ
ओ हुसना
पत्ते क्या झड़ते हैं
पाकिस्तां में वैसे ही
जैसे झड़ते यहाँ
ओ हुसना
होता उजाला क्या
वैसा ही है
जैसा होता हिन्दोस्तां यहाँ
ओ हुसना
वो हीरों के रांझे के नगमें
मुझको अब तक, आ आके सताएं
वो बुल्ले शाह की तकरीरों के
झीने झीने साये
वो ईद की ईदी
लम्बी नमाजें
सेंवैय्यों की झालर
वो दिवाली के दीये संग में
बैसाखी के बादल
होली की वो लकड़ी जिनमें
संग-संग आंच लगाई
लोहड़ी का वो धुआं जिसमें
धड़कन है सुलगाई
ओ हुसना मेरी
ये तो बता दो
लोहड़ी का धुंआ क्या
अब भी निकलता है
जैसा निकलता था
उस दौर में हाँ वहाँ
ओ हुसना
क्यों एक गुलसितां ये
बर्बाद हो रहा है
एक रंग स्याह काला
इजाद हो रहा है
ये हीरों के, रांझों के नगमे
क्या अब भी, सुने जाते है हाँ वहाँ
ओ हुसना
और
रोता है रातों में
पाकिस्तां क्या वैसे ही
जैसे हिन्दोस्तां
ओ हुसना
Movie/Album: कोक स्टूडियो एम.टीवी (2012)
Music By: पियूष मिश्रा, हितेश सोनिक
Lyrics By: पियूष मिश्रा
Performed By: पियूष मिश्रा
और ये रहा विडियो का लिंक ( http://www.youtube.com/watch?v=4zTFzMPWGLs )
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