आज रवीश का लेख “मै प्रवासी हूँ” पढकर फिर से एक प्रवासी होने के दर्द को महसूस किया। रवीश ने अच्छा लेख लिखा है जरुर देखिएगा। कई साल पहले मैने भी इस बारे मे कुछ लिखा था।
प्रवासी एक सामाजिक प्रक्रिया है, इसे रोका नही जा सकता। देखा जाए तो दिल्ली भी प्रवासियों ने ही आबाद किया, पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने ही दिल्ली, सही मायने मे आर्थिक रुप से समृद्द दिल्ली बनाया। जब भारत एक देश है तो उसमे गैर इलाकाई लोग प्रवासी कैसे हुए? मुम्बई मे सभी लोगों के लिए समान अवसर थे, बाहर के लोगों ने आकर मुम्बई को आर्थिक राजधानी बनाया, अब वो प्रवासी हो गए? ये राज ठाकरे जैसे लोग, इन मराठी अस्मिता जैसे मुद्दों मे अपनी राजनीतिक जमीन खोज रहे है, जहाँ उनको जमीन मिल गयी, फिर वो भी चुप बैठ जाएंगे। राजनीतिक बेरोजगारी बहुत बड़ी चीज होती है।
तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, हर शहर के विकास की कुछ सीमाएं होती है। शहर की आबादी भी उसी अनुसार होनी चाहिए। जहाँ तक दिल्ली की बात है, दिल्ली एनसीआर क्षेत्र काफी विस्तृत हो चुका है, उसका विकास भी सही ढंग से नही हो पा रहा है, ऊपर बढती आबादी, आखिर कब तक मौजूदा इंफ़्रास्ट्रक्चर, इस बढते बोझ को सम्भालेगा। सरकार को विकास की नयी योजनाएं बनानी चाहिए और उन पर ईमानदारी से अमल करना चाहिए। तभी इन समस्याओं से निजात मिलेगी।
दूसरी तरफ़ गाँवों से शहरों की ओर पलायन अभी भी नही रुक रहा। गाँव देहात में रोजगार के अवसर बढ नही रहे, यही मूल समस्या है। इसका समाधान किया जाना है।
मै भी एक प्रवासी हूँ, दूसरे देश मे रहता हूँ, एक प्रवासी का दर्द समझता हूँ। आज भी तीज त्योहारों मे अपना घर, अपना शहर याद आता है। उन्ही यादों के साये मे ब्लॉग लिखे जा रहे है। हम जब अपने देश भारत जाते है तो लोग नान रिलायबल इंडियन (या Not Required Indians) समझते है, विदेश मे भले ही यहाँ के लोग भले ही पेशेवरों को इज्जत दें, लेकिन समझते तो बाहर वाला ही है। हम तो दोनो जगह ही मन से नही स्वीकारे जाते। यहाँ पर कई कई बार तो बाहर के लोगों को हटाकर स्थानीय लोगों को रखने की बात चली, हर बार लगता था अबकि तो नौकरी पक्का जाएगी। लेकिन हर बार तकनीकी लोगों को छोड़ दिया जाता। देखो कब तक चलता है ऐसा। खैर अपने दर्द अपने है। बदलते वक्त के साथ इनको झेलने की क्षमता भी बढ गयी है। आप भी किसी ऐसी स्थिति से दो चार हुए होंगे, तो लिख दीजिए अपने विचार, बताइए दूसरों को इस बारे में।
बाकी भारत के नागरिक, अपने ही देश मे प्रवासी कैसे हुए? लगता है प्रवासी की परिभाषाएं बदलने लगी है। आपका क्या कहना है इस बारे में?
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