कांग्रेस गठबंधन के चुनाव जीतने के बाद, अभी भी उसे बहुमत की मैजिक संख्या 272 के करीब पहुँचने के लिए लगभग 10 सांसदों की जरुरत होगी। लेकिन सभी मौकापरस्त पार्टियों मे होड़ लगी है कि कौन अपना समर्थन पत्र कांग्रेस आलाकमान को पहले भेजता है। सपा हो या बसपा, जनतादल(देवगौड़ा) हो या अजीत सिंह की पार्टी, सभी मुँह उठाकर, दस जनपथ की तरफ़ निकल पड़े है। सभी दल आजकल एक ही गाना गा रहे है:
तुम अगर मुझको ना चाहो तो कोई बात नही
तुम किसी और को चाहोगी, तो मुश्किल होगी….
सबकी अपनी अपनी मजबूरिया है। बसपा सुप्रीमो के साथ मजबूरी ये है कि उनके खिलाफ सीबीआई ने ताज कॉरीडोर मामले मे केस चला रखे है, इसलिए उनको समर्थन का पत्र देना मजबूरी है। हालांकि बहिनजी जानती है कि अब पत्र देने से कुछ नही होने वाला। चुनाव पूर्व गठबंधन होता तो कोई बात होती।
सपा के अमरसिंह, वो तो हमेशा समर्थनपत्र जेब मे रखकर घूमते है। जिनसे भी इनका पंगा होता है, वो इनके बड़े भाई/बहन होते है। बस किसी तरह से कांग्रेस आलाकमान मान जाए। सपा वाले तो इतने आतुर है कि जयाप्रदा ने तो इन्टरव्यू मे ही कह डाला, कि वो मंत्री बनने के लिए तैयार है। मोहतरमा रुकिए, अभी मैडम ने हाँ नही की है, इसलिए सब्र रखिए। तब तक आजम भाई को राखी वाखी बांधने का प्रोग्राम क्यों नही बनाती।
अजीत सिंह, ये सत्ता के बिना नही रह सकते। इन्होने चुनाव बीजेपी के साथ लड़ा था। लेकिन इनकी कोई विचारधारा नही, जो सत्ता मे रहता है, अजीत सिंह उसी के साथ नजर आते है। कांग्रेस ने वक्त की नजाकत समझते हुए, इनके सामने पासा फेंका है कि अपनी पार्टी का कांग्रेस मे विलय करो। अजीत सिंह अभी ऑफर को नापतौल रहे है, उम्मीद है मान जाएंगे।
देवगौड़ा और कुमारस्वामी को भी कर्नाटक मे बीजेपी से सुरक्षा चाहिए, अब चूंकि प्रतिद्वंदी का प्रतिद्वंदी दोस्त होता है, इस लिहाज से कांग्रेस उनकी दोस्त हुई। ये तीसरे मोर्चे मे थे, पिताजी (देवगौड़ा )तीसरे मोर्चे मे सबसे साथ हाथ उठाकर, एकता दिखा रहे थे, पुत्र (कुमारस्वामी)सबसे पहले, मुँह छिपाते हुए दस जनपथ हो आए थे। गोटियां फिट हो चुकी है, इनका काम भी बन जाएगा। मंत्रालय मिलेगा या नही पक्का नही।
लेकिन कांग्रेस इस बार सजग है, बड़े दलों से समर्थन लेने से अच्छा है छोटे छोटे दलों को कांग्रेस मे विलय कराया जाए। लेकिन यदि बड़े दल जैसे सपा, बसपा, बीजेडी, जेडीयू वगैरहा समर्थन देते है राज्यसभा में कांग्रेस की राह आसान हो जाएगी, जहाँ वो अभी बहुमत मे नही है। इस तरह से किसी भी बिल को पास कराना काफी आसान हो जाएगा।
लोग जैसे तिरुपति के मंदिर मे अपने बही खाते चढा आते है, वैसे ही सभी धर्मनिरपेक्ष (??) दल, अपना समर्थन पत्र कांग्रेस आलाकमान को अर्पित कर रहे है। हम भी सोचते है कि अपना समर्थन टिका आएं। लेकिन फिर सोचते है, मंत्रीपद तो चाहिए नही, फिर सीबीआई भी हमारे पीछे नही पड़ी, फिर सबसे बड़ी बात, कांग्रेस के किसी नेता भी हमारी बेइज्जती तो की नही, जो कि समर्थन पत्र देने की पहली शर्त है।
लेकिन क्या आपने सोचा है, यदि कांग्रेस की जगह बीजेपी खड़ी होती तो? तो क्या कुछ खास थोड़े ही बदलता। यही दल (एक इधर या उधर), बीजेपी को धर्मनिरपेक्ष दल मानते हुए, अपना समर्थन पत्र टिकाते, वैसे भी अगर बीजेपी की दो सौ सीटे आ जाती तो वो अपने आप धर्मनिरपेक्ष हो जाती। खैर कुछ भी हो, इस तरह की राजनीति देखने मे मजा आ रहा है।
आपका क्या कहना है इस बारे में?
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