दिल का दुखड़ा

अपने दिल के हाल सुनाने से पहले मेरे को कैफी आजमी साहब का एक शेर याद आ रहा हैः

बस इक झिझक है यही,हाल ‍ए दिल सुनाने मे,
कि तेरा भी जिक्र आयेगा इस फसाने मे

अब का बताया जाय… बहुत दिनो से लिखने की सोच रहे थे, लेकिन क्या करे की लिखने का मूड ही नही बन पा रहा है.पाठक लोगो ने भी चोक लेनी शुरू कर दी है कि ये मिर्जा वगैरहा पर लिखने वाले, क्रिकेट अपडेट कब से लिखने लगे.अभी पिछले किये वादे ही नही निभाये हो, नयी नयी बाते लिखने लगे हो.

खैर आइये कुछ पिछले वाले वादो का जिक्र कर ले.पहला वादा था मिर्जा साहब जो स्टार न्यूज के खुलासे पर बहुत कुछ बोले थे, वो सब मिर्जा साहब के रमजान के चक्कर मे पब्लिश होने से रूक गया था.उसमे बहुत सारे अंश सम्पादित करने पड़ेंगे, अन्यथा तो यह ब्लाग मस्तराम डाइजेस्ट बन जायेगा. और देस परदेस मे मेरी बहुत पिटाई हो जायेगी. तो थोड़ा समय दे, ताकि सम्पादित करने के बाद प्रकाशित किया जा सके. दूसरा वादा था, स्वामी का इन्डियन क्रिकेट टीम के प्रति गुस्सा, मैने स्वामी का पूरा लेक्चर तो झेल लिया लेकिन उसमे कंही भी कोई नयी बात नही दिखी, इस मामले मे इतना कुछ पहले ही कहा जा चुका है, कि भारतीय टीम को और ज्यादा गालिया देना, मै उचित नही समझता, वैसे भी गालिया खाकर कौन सा वो लोग सुधर जायेंगे.

लेकिन जब से यह अनुगूँज का निबन्ध लिखने की प्रथा शुरू हुई है, तब से लिखने का मूड तभी बन पाता है, जब अनुगूँज की आखिरी तारीख की गूँज सुनायी पड़ती है. इसी कारण पिछले निबन्ध की तारीख बढवायी थी. ये तो चलो तो गनीमत है कि हम नये ब्लागरो को आखिरी तारीख तो याद रहती है, बुजुर्ग ब्लागर्स तो तारीख भी नही याद रखते, कभी इलेक्शन मे बिजी होते है तो कभी शार्टकट मारते है. जो इलेक्शन मे नही बिजी होते है, वो अन्तर्ध्यान हो जाते है, और तभी अवतरित होते है, जब उनको कोई गुरू ज्ञान मिलता है.

अब जब हमको अनुगूँज का निबन्ध लिखने का आदेश हुआ तो हम भी फटाक से टीप टाप कर निबन्ध तो लिख डाले, लेकिन समस्या थी कि पढे कौन, ये तो भला हो ब्लाग मेला वालों का, जो उन्होने आड़े समय मे मदद की, और ग्राफ को नीचे नही आने दिया, अब निबन्ध लिख लिया गया, आखिरी तारीख के पहले ब्लाग पर चिपका भी दिया गया, तो आयोजक महोदय, जिन्हे सभी के निबन्धो का निचोड़ बना कर एक उपनिबन्ध लिखना था, वो ही नदारद है, सुना है अन्तर्ध्यान हो गये है शायद आजकल कुछ कविताये पढ रहे है और अनुवाद वगैरहा मे लगे है. देखो कब तक प्रकट होते है. हमारा हाल तो उस फरियादी की तरह से है, जिसने खींच खांच कर अदालत तक तो पहुँच गया लेकिन बस तारीख पर तारीख ही मिल रही है.

इसी बीच एक मसला और हो गया, एक कन्या जिसने अंग्रेजी मे कविता लिख दी, और अपने ब्लाग पर चिपका दी, लोग बाग, सारे के सारे ठलुआ ब्लागर मुंह उठाकर सीधे उसके ब्लाग पर पहुँच गये. और लग गये तारीफ पर तारीफो के पुल बांधने, और बताने कि क्या कविता लिखी है, क्या भाव है, क्या व्याख्या है,क्या शब्द है वगैरहा वगैरहा…. कुछ उत्साही लोगो ने कविता का हिन्दी मे अनुवाद भी ठोंक दिया, और पता नही कितने लोग अन्य भाषा के अनुवाद मे लगे हुए है, फिर मसला शुरू हो गया कि अनुवाद ठीक है कि नही, सीप मे मोती, या मोती मे सीप, प्रेमी प्रेमिका या माँ बेटे का रिश्ता वगैरहा वगैरहा…..अरे भाई, इतना डीप मे हम भी नही उतरे थे, अरे भाई क्या फर्क पड़ता है, छुरा खरबूजे पर गिरे, या खरबूजा छुरे पर….हम लोग क्यो टेन्शन ले, मगर नही हमारे शुक्ला जी ने पूरा दो पन्ने का ब्लाग लिख मारा, और हिम्मत करके उस कन्या के ब्लाग पर, अपना ब्लाग देखने का निमन्त्रण पत्र भी चस्पा कर आये. अब कन्या को तारीफो से फुर्सत मिले तभी तो आलोचना वाले ब्लाग पर जायेगी, अपने शुक्ला जी समझते ही नही. वही हुआ, अगली फुर्सत मे कन्या ने टिप्पणियो की सफाई की और शुक्लाजी की आलोचना वाले निमन्त्रण पत्र को भी रद्दी की टोकरी मे डाल दिया. अब शुक्ला जी परेशान टहलते फिर रहे है.

दरअसल सारा मसला था ब्लागर का कन्या होना, अगर वही कविता हमारे जैसा कोई ठलुआ ब्लागर लिखता, तो कोई पढना तो दूर की बात है, झांकने भी नही जाता. यही सोच कर हमने भी एक आध ब्लाग किसी कन्या के नाम पर लिखने की सोची है, ताकि हमारा ब्लाग सिर्फ हमें ही ना पढना पढे.आप लोगो के दिमाग मे कोई झकास सा नाम हो तो बुझाईयेगा.अब आप भी कहेंगे कि क्या हम भी कन्या से इम्प्रेस हो गये है, तो भइया आप को एक राज की बात बता देते है कि हम इम्प्रेस तो तब होते ना जब हमने पूरी कविता पढी होती… ना हमने कविता पढी, ना इम्प्रेस होने के चक्कर मे पढे, लेकिन हाँ तारीफ तो टिप्पणी तो हमने भी लिख दी… क्यो? अरे भाई जब सब लोग तारीफ कर रहे हो और हम ना करे तो हम पिछड़ नही जायेंगे?….. सो हमने अपने आप को पिछड़ने से बचाने के लिये तारीफ तो लिख दी, यही सोच कर कि शायद कोई ज्ञानी महाज्ञानी हमारी टिप्पणी पढकर ही हमारे ब्लाग पर आ जाये… या आप कहे कि हमने एक टिप्पणी का इन्वेस्टमेन्ट किया था, अब उसका कितना फायदा हुआ, देखना बाकी है.

अब आप लोग भी चूकिये मत, टिप्पणी का इन्वेस्टमेन्ट कर डालिये, कंही देर ना हो जाय.

एक और दुखड़ा है हमारा, हमारे हिन्दी ब्लागर भाईयो के चिट्ठा समुह के हैडक्वार्टर चिट्ठा विश्व मे सारे पुराने चिट्ठाकारो के परिचय पत्र मौजूद है और कइयो के लेखो का पोस्टमार्टम करने वाला लेख मौजूद है, हम भी इस खुशफहमी मे थे कि कभी हमारा थोबड़ा भी वहाँ लटका मिलेगा या कोई बन्धु हमारे लेखो का उल्लेख कर हमारे दिन तार देगा, बहुत दिन इन्तजार करने के बाद, हमने भी अपना परिचय पत्र वहाँ के लिये रवाना कर दिया, और इसी इन्तजार मे दिन मे चार चार बार वहाँ विजिट किये…….लेकिन इतने दिन,हफ्ते,महीने गुजर गये आज तक हमारा थोबड़ा वहाँ नही दिखाई पड़ा, समझ मे नही आता, डाकिये को हमारा परिचय पसन्द आ गया और उसने पार कर दिया या फिर नये ब्लागर्स के परिचय पत्र टांगने की प्रथा ही नही है. अब ये बात तो सारे बजुर्ग ब्लागर बन्धु ही बता पायेंगे, हम अज्ञानी लोग क्या जाने इस बारे मे.

One response to “दिल का दुखड़ा”

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