देख लो ख्व़ाब मगर….


देख लो ख्व़ाब मगर ख्व़ाब का चर्चा न करो
लोग जल जायेंगे सूरज की तमन्ना न करो

वक़्त का क्या है किसी पर भी बदल सकता है
हो सको तुम से तो तुम मुझ पे भरोसा न करो

किर्चियां टूटे हुए अक्स की चुभ जायेंगी
और कुछ रोज़ अभी आईना देखा न करो

अजनबी लगने लगे खुद तुम्हें अपना ही वजूद
अपने दिन रात को इतना भी अकेला न करो

ख्व़ाब बच्चों के खिलौनों की तरह होते हैं
ख्व़ाब देखा न करो ख्व़ाब दिखाया न करो

बेख्याली में कभी उंगलिया जल जायेंगी
राख गुज़रे हुए लम्हों की कुरेदा न करो

मोम के रिश्ते हैं गर्मी से पिघल जायेंगे
धूप के शहर में ‘आज़र’ ये तमाशा न करो
-कफ़ील आज़र

One response to “देख लो ख्व़ाब मगर….”

  1. Ravi Avatar
    Ravi

    Welcome India. For reading Hindi on Win98 cyber cafe, download firefox/opera and install in the cafe you are working, and use these browser instead of IE (most of the cyber cafe use win98 default browser IE 5, which has no Unicode support). Opera supports (to a limited extent) e-swami’s tool to post in hindi.

    Ravi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *