होली उत्तर भारत के अलावा अन्य प्रदेशों मे भी मनाई जाती है, हाँ थोड़ा बहुत रुप स्वरुप बदल जाता है।
हरियाणा की धुलन्डी
हरियाणा मे होली के त्योहार मे भाभियों को इस दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दें।इस दिन भाभियां देवरों को तरह तरह से सताती है और देवर बेचारे चुपचाप झेलते है, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है।शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी के लिये उपहार लाता है इस तरह इस त्योहार को मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति मे यही तो अच्छी बात है, हम प्रकृति को हर रुप मे पूजते है और हमारे यहाँ हर रिश्ते नाते के लिये अलग अलग त्योहार हैं।ऐसा और कहाँ मिलता है।
बंगाल का बसन्तोत्सव
गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर ने होली के ही दिन शान्तिनिकेतन मे वसन्तोत्सव का आयोजन किया था, तब से आज तक इस यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे बंगाल मे इसे ढोल पूर्णिमा अथवा ढोल जात्रा के तौर पर भी मनाया जाता है, लोग अबीर गुलाल लेकर मस्ती करते है। श्रीकृष्ण और राधा की झांकिया निकाली जाती है।
महाराष्ट्र की रंग पंचमी और कोंकण का शिमगो
महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों मे इस त्योहार को रंगों के त्योहार के रुप मे मनाया जाता है। मछुआरों की बस्ती मे इस त्योहार का मतलब नाच,गाना और मस्ती होता है। ये मौसम रिशते(शादी) तय करने के लिये मुआफिक होता है, क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक दूसरे के घरों को मिलने जाते है और काफी समय मस्ती मे व्यतीत करते हैं।
पंजाब का होला मोहल्ला
पंजाब मे भी इस त्योहार की बहुत धूम रहती है। सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री अनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है।कहते है गुरु गोबिन्द सिंह(सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी।तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में सिख शौर्यता के हथियारों का प्रदर्शन और वीरत के करतब दिखाए जाते हैं। इस दिन यहाँ पर अनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।कभी आपको मौका मिले तो देखियेगा जरुर।
तमिलनाडु की कामन पोडिगई
तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किवदन्ती है। प्राचीन काल मे देवी सती (भगवान शंकर की पत्नी) की मृत्यू के बाद शिव काफी क्रोधित और व्यथित हो गये थे।इसके साथ ही वे ध्यान मुद्रा मे प्रवेश कर गये थे।उधर पर्वत सम्राट की पुत्री भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिये तपस्या कर रही थी। देवताओ ने भगवान शंकर की निद्रा को तोड़ने के लिये कामदेव का सहारा लिया।कामदेव ने अपने कामबाण के शंकर पर वार किया।भगवन ने गुस्से मे अपनी तपस्या को बीच मे छोड़कर कामदेव को देखा। शंकर भगवान को बहुत गुस्सा आया कि कामदेव ने उनकी तपस्या मे विध्न डाला है इसलिये उन्होने अपने त्रिनेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। अब कामदेव का तीर तो अपना काम कर ही चुका था, सो पार्वती को शंकर भगवान पति के रुप मे प्राप्त हुए। उधर कामदेव की पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रुप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।
और अब कानपुर की होली के बारे मे कुछ शब्द
पूरे देश मे होली का त्योहार एक दिन के लिये मनाया जाता है, लेकिन कानपुर मे यह त्योहार पूरे सात दिन तक मनाया जाता है।होली के दिन से लेकर अनूसुइया नक्षत्र के दिखाई देने तक, रोजाना होली खेली जाती है। इस दौरान शहर के सभी बड़े थोक बाजार बन्द रहते है, सभी लोग इस दौरान अपने अपने गाँवो/शहरों मे होली मनाने चले जाते है। पुराने लोगों का मानना है कि अनुसुइया नक्षत्र दिखाई देने तक व्यापार के लिये महूर्त ठीक नही रहता इसलिये दुकाने बन्द रखी जाती है।हालांकि अब इस होली को दो या तीन दिन तक सीमित किए जाना के काफी प्रयास किये जा रहे है।फिर भी जब तक अनुसुइया नक्षत्र नही दिखाई देता, कोई भी दुकान खोलने की हिम्मत नही करता।जिस दिन नक्षत्र दिखाई दे जाता है, उसके अगले दिन को यहाँ गंगा मेला के तौर पर मनाया जाता है, उस दिन रंगो का आखिरी दिन होता है। अगले दिन लोग वापस अपने व्यापार को लौटते हैं।
तो भैया, जब भी कानपुर आओ, तो होली के समय सोच समझकर ही आना, बाद मे मत कहना कि पहले बताया नही।तो भैया ये था होली का हिसाब किताब, अब कोई और होली छूट गयी हो तो जरुर बताना,हमारा तो इतना ही ज्ञान था, जो यहाँ पर उड़ेल दिया। आपको और आपके परिवार में सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनायें।
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