आज बहुत दिनो बात लिखने का मौका मिला है, चलो जी जित्ता हो सके निबटा लिया जाए। आजकल तो पढने लिखने का मौका ही मिलता, क्या करें, तीन तीन प्रोजेक्ट सर पर है, सबको निबटाना है। एक अकेली जान, हैरान परेशान क्या क्या करूं, इसलिए ब्लॉगिंग बैक बर्नर पर चली गयी है। खैर जनाब ये हमारी परेशानी है, हम ही सुलटेंगे, आप टेंशन मत लो। आइए बात करते है, सड़क पर हमारे व्यवहार की। इसके पहले हम आपको एक आपबीती सुनाते है।
ये आपबीती है कुवैत की एक सड़क की। किस्सा सुनकर आपको काफी अजीब लगेगा। वैसे तो पूरे गल्फ मे मशहूर है कि सऊदी और कुवैत के बाशिंदे काफी गर्म मिजाज और अकड़ू किस्म होते है। लेकिन कुवैत मे मैने एक बात देखी है, कानून को कोई भी अपने हाथ मे नही लेता। मेरे को याद है काफी साल पहले मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था। दरअसल गलती मेरी ही थी, अगला बन्दा(कुवैती ही था) मेरी गाड़ी के आगे चल रहा था, स्पीड यही कोई 80/100 किमी की रही होगी, अचानक अगली गाड़ी वाले को ब्रेक मारना पड़ा, मैने भी काफी कोशिश की, लेकिन फिर भी मेरी गाड़ी उसकी गाड़ी को छू ही गयी। बन्दा अपनी गाड़ी से बाहर निकला, हम दोनो ने एक दूसरे का अभिवादन किया, हाथ मिलाए, उसने हमे सिगरेट ऑफर की, दोनो ने एक दूसरे की गाड़ी का मुआयना किया, और फिर पुलिस को फोन किया गया। सड़क के किनारे खड़े होकर, पुलिस का इंतजार करने के बीच काफी प्रेमपूर्वक बातचीत हुई। पुलिस भी आनन फानन मे पहुँच गयी, उसने हमारी गाड़ियों की लोकेशन को कागज पर उतारा, हम सभी ने एक दूसरे के नम्बर लिए और ऑफिस के बाद शाम को मिलने का वादा किया, इस तरह से बड़े ही सौहार्दपूर्ण तरीके से एक सड़क दुर्घटना को निबटाया गया। इसके उलट अगर यही बात दिल्ली/कानपुर मे घटित होती तो क्या होता? चलिए एक किस्सा भारत का भी हो जाए।
अभी पिछली भारत यात्रा के दौरान, देखा काफी कुछ बदल गया है। नही बदला है तो बस हम लोगों का सड़क पर व्यवहार करने का रवैया। दिल्ली मे मै अक्सर खुद ड्राइव नही करता, दोस्त की एक गाड़ी और ड्राइवर लेकर, फैमिली सहित, कंही काम से जा रहा था। दक्षिण दिल्ली की बात रही होगी, आश्रम के पास एक हमारी गाड़ी के पीछे एक गाड़ी आ रही थी, जिसे एक लड़की चला रही थी, और जाने का पॉस मांग रही थी, आगे ट्रैफिक था इसलिए ड्राइवर पॉस नही दे पा रहा था। लड़की लगातार हार्न पर हार्न देती रही। अगली लाल बत्ती से जैसे ही गाड़ी आगे निकली, लड़की ने गाड़ी को हमारी गाड़ी के आगे लगा दिया और बाहर निकल कर सीधे हमारे ड्राइवर के पास आकर, माँ बहन की गालियां निकालने लगी। लड़की के मुँह से धाराप्रवाह गंदी गंदी गालियां सुनकर मै भी सकते मे आ गया। ऐसा नही कि हमने गालियां नही सुनी/दी, लेकिन फैमिली के साथ बातचीत के दौरान मजाल है कि कभी मुँह से कोई भी गलत शब्द निकल जाए। लेकिन लड़की के मुँह से धाराप्रवाह गालियां सुनकर, हम तो एकदम से सकते मे आ गए।
लड़की पढी लिखी लग रही थी, हमने तुरन्त हस्तक्षेप किया और पूछा कि शक्ल से तो तुम पढी लिखी लगती हो, क्या यही सही तरीका है रोड पर व्यवहार करने का। क्या यही कहती है हमारी सभ्यता? लड़की पर तो जैसे मेरी बात का कुछ असर ही नही हुआ, वो बदतमीजी से व्यवहार करती रही, ड्राइवर के गिरेहबान पर हाथ डालने लगी। ड्राइवर ने हमारी तरफ़ देखा, हमने भी बात न बनते देख, उसको आंखो ही आँखो मे गो अहेड का संकेत दे दिया, फिर क्या था, ड्राइवर ने उतर कर उसको उसी की भाषा मे समझाया कि गलती तुम्हारी थी, और अगर तुम इसी तरह से व्यवहार करती रही तो तुमको सीधे अंदर करवा देंगे। गालियों का बदला गालियों से मिलता देख, लड़की बड़बड़ाती हुई अपनी गाड़ी की तरफ़ चली गयी।
अब दोनो किस्से आपने सुने/पढे, आप खुद ही फर्क देखिए। दिल्ली मे घटित ने मुझे कई बातों सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि :
- क्या हमे सड़क पर व्यवहार करने का तरीका नही आता?
- क्या हम गाड़ी खरीदकर सोचते है हमने सड़क भी खरीद ली है?
- क्या हमारी लाइफस्टाइल काफी तनावपूर्ण है, और उस तनाव को हम सड़क पर निकालते है?
- क्या हमे सड़क पर चलने वाले दूसरे लोगों की कतई परवाह नही होती?
आपका क्या सोचना है इस बारे में? अपनी प्रतिक्रिया लिखना मत भूलिएगा।
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