अभी कल ही टीवी पर उड़ीसा विधान सभा मे चप्पलबाजी की घटना देखने को मिली, मन प्रसन्न हो गया, दिल बाग बाग हो गया, हमे लगा कि लोकतन्त्र अभी भी जिन्दा है.हमारे कांग्रेसी विधायक महोदय, विधानसभा के अन्दर, सत्तापक्ष की तरफ चप्पल फेंक कर अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे. पूरी तरह से लोकतन्त्रीय व्यवस्था का सही नमूना पेश कर रहे थे.
ऐसा नही कि यह पहली बार हुआ है, दरअसल विधानसभा मे चप्पलबाजी का इतिहास बहुत पुराना है, एक तरफ जहाँ गुजरात,महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश और राजस्थान की विधानसभा मे चप्पले और माइक तक चल चुके है, तो फिर उड़ीसा क्यो पीछे रह जाता? पिछड़ेपन का ठप्पा ना लग जाता? ये तो भला हो कांग्रेसी विधायक अनूप साई का जिन्होने कांग्रेस की परम्परा और उड़ीसा की इज्जत की लाज रखी. हम सभी को तो इन विधायक महोदय का शुक्रिया अदा करना चाहिये और केन्द्र की सरकार को चाहिये कि इनको सम्मानित करे, आखिर इन्होने उड़ीसा के पिछड़ेपन को दूर करने मे सहायता की है.
जब विधायक से पूछा गया कि चप्पल क्यो चलायी, तो पहले मुकर गये, फिर जब वीडियो दिखाया गया तो बोले, हो सकता है, मै भावना मे बह गया होऊ, इसलिये चप्पल कब हाथ मे आ गयी कब उछल गयी, पता ही नही चला. वैसे दिल से मेरा इरादा किसी को नुकसान पहुँचाने का नही था………. अब यह सब लीपापोती तो होती रहेगी.. कोई विधायक को दोषी ठहरायेगा, कोई भावनाओ को, कोई गुस्सा दिलाने वालो को, तो कोई चप्पल को.
मेरे ख्याल से केन्द्र की सरकार, विधानसभा मे चप्पल पहन कर आने पर पाबन्दी लगाने की सोचेगी…. लेकिन किस किस पर पाबन्दी लगायेगी,
आखिरी समाचार मिलने तक विधायक महोदय को इस सत्र के लिये निलम्बित कर दिया गया है, लेकिन क्या गारन्टी कि कहीं किसी और विधानसभा या लोकसभा मे फिर चप्पल जूता नही चलेगा?
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