इससे पहले कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाले हमारे खिलाफ़ कोई फ़तवा जारी करें या दण्ड उठाकर हमारे पीछे दौड़े, हम बता दें कि हम उनके बारे मे बात नही कर रहे।
अब क्या? ये RSS क्या होता है? और क्यों होता है? ये फीड का क्या फन्डा है?
अक्सर ये सवाल मै, अपने कई जानकारों से सुनता हूँ । और सवाल करने वाले भी कम्प्यूटर के जानकार लोग होते है। कुछ लोग हर ब्लॉग पर RSS का आइकान देखकर पूछ बैठते है। अब हम जब किसी को समझाने की कोशिश करते है और कोई सरल सा जवाब बताने की कोशिश करते हैं। लेकिन कंही ना कंही कुछ तकनीकी मसला बीच मे आ ही जाता है, जिससे लोग उचक जाते है। इसी बीच मिर्जा से बातचीत हुई, बोले "देखो मिंया,ये तकनीकी मसले जेब मे रक्खो, हमको तो साफ़ सीधी भाषा मे बताओ, नही बता सकते तो ये RSS गया तेल लेने।जब तक ये तकनीकी मामलों को सरल और सीधी साधी भाषा मे जनता को नही समझाओ, तब तक बात नही बनेगी। ऐसे किसी को RSS का मतलब समझाओगे, तो लोग तुमको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाला समझेंगे, और खांमखां मे बुरे बनोगे। इसलिये अगर तुम मुझे सीधी सीधी भाषा मे फीड का फन्डा समझाओगे, तभी मै समझूंगा कि तुमको RSS की समझ है।" मिर्जा की बाद दिल को चुभ गयी, लेकिन होठों पर मुस्कान फैलाते हुए हम समझाने लगे, तो आइये भाई लोग आप भी मिर्जा के साथ साथ फीड का फन्डा समझिये।
देखो मिर्जा,जब इन्टरनैट पहले पहल आया तो लोग बहुत उत्साहित थे, रात रात जागकर नयी नयी वैबसाइटों की खोज करते,और उतने ही उत्साह से अपने दोस्तों के बीच उस साइट की बढाई करते और अपने को इन्टरनैट गुरु का दर्जा देते। धीरे धीरे जमाना बदला,लोग काहिल और आलसी हो गये। इधर इन्टर्नैट गुरु उन्हे साइट की तारीफ़ करके पता देते, तो लोग बाग अपने ब्राउजर (अब ब्राउजर का मतलब पूछने मत बैठ जाना) के फेवरिट बुकमार्क मे डालकर भूल जाते, कई लोग तो इतनी जेहमत भी नही उठाते। कई कई बार लोग बाग थोड़ी जहमत उठाकर साइट पर जाते तो पाते कि ब्लॉगर भाई ने कई दिनो से अपनी दुकान बन्द कर रखी है , लोग भारी मन से वापस लौट आते। ठीक वैसी पीड़ा होती जैसे पता चलता कि लाला के यहाँ किरोसीन आया है, डब्बा लेकर पहुँचों तो पता चलता है किसी मनचले ने अफवाह उड़ा दी थी, लाला तो दो दिनो से दुकान बन्द करके साली की शादी मे चिंचपोकली गया है। अब लोगों के भूलने और आकर लौटने से तो साइट बनाने वालों का भला नही ना होना था ना। इसी मसले पर इन्टरनैट गुरुओं,सर्च वालों (गूगलवा) और साइट बनाने वालो और साफ़्टवेयर बनाने वालो (बिल्लू टाइप की कम्पनियों) और फ़्री के जिगाडियों (GPL) का सम्मेलन हुआ और वहाँ पर ये चर्चा हुई कि इन्सान दिन पर दिन काहिल और नाकारा होता जा रहा है, किसी साइट पर जाकर पढना उसे गवारा नही है। तो एक इन्टरनैट गुरु ने कहाँ इसका मतलब इन्सान को निवाला(FEED) मुंह मे खिलाना पड़ेगा। बस लोगों ने बात पकड़ ली, और फीड शब्द का अविष्कार हुआ। बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानियों ने इस विषय पर शोध किया कि फीड कैसा हो,और लोगों तक कैसे पहुँचे। अब इन्टरनैट पर सारा काम एक ही ग्रुप करे वो किसी को गवारा नही था, इसलिये लोगों ने काम बाँट लिया(प्रोजेक्ट डिस्ट्रीब्यूशन) तो किसी ने फीड के स्पेस्सीफिकेशन लिखे, किसी ने प्रोटोकोल और किसी ने फीडरीडर बनाने का जिम्मा लिया।
अब साइट बनाने वाले,अपना फीड बनाते और उसका लिंक अपनी साइट पर चिपका देते। अब न्यूज साइट वालों के यहाँ फीड की इमेज दिखना आम बात हो गयी। अब ब्लॉग वाले भी काहे को पीछे रहते, उन्होने ने भी अपने ब्लॉग साफ़्टवेय्रर से आटोमेटिक तरीके से फीड बनाये और अपनी साइट पर चिपका दिये। ये तो रही फीड की बात। सामान्य ज्ञान का प्रथम अध्याय समाप्तम अब फीड के बारे मे और ज्यादा समझने के लिये अगले अध्याय पर जायें।
अध्याय दो:
अब फीड भी दो तरह के होते है,एक एटम और दूसरा RSS। अब क्या है कि एटम का नाम सुनते ही अमरीकी जैसे महाशक्तियों के कान खडें हो जाते है।वैसे भी अमरीकियों को हर चीज बदलने की आदत है, क्योंकि एक ही चीज से वो लोग जल्दी बोर हो जाते है( अमां मामले को दूसरी तरफ़ मत ले जाओ, ट्रेक पर ही रहो।) इसलिये उन्होने दूसरा तरीका बनाया जिसे RSS कहते हैं RSS बोले तो रियली सिम्पिल सिन्डीकेशन। क्या कहा सिन्डीकेशन?, अरे यार सिन्डीकेशन बोले तो लंगर। जैसा गुरुद्वारे मे होता है, आओ, खाओ और घरवालों और पड़ोसियों के लिये ले जाओ। अब जमाना बदल गया था, लोग अपनी साइट पर एक लिंक दे देते, जिसमे RSS का लोगो बना होता, उसे क्लिक करते ही फीड की साइट खुल जाती, और आपका ब्राउजर आपके फीड को सब्सक्राइब कर लेता, जिससे अगली बार जब भी उस साइट पर कुछ नया छपता तो फीड मे अपने आप, आपके द्वारे आ जाता।
तो समझे भैया फीड का फन्डा? ज्यादा जानकारी के लिये यहाँ देखा जाय। क्या कहा? फीड कैसे काम करता है? अमां यार अब ये सब बताने बैठ गया तो लोगबाग भाग जायेंगे।ऐसा करता हूँ देबू दादा को बोलते है, कि "फीड कैसे काम करता है " पर लिखें।क्यों देबू दा ठीक है ना?
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