आज जब मै यह लेख लिख रहा हूँ, तब तक उत्तर प्रदेश की सत्ता पर “बहन मायावती” काबिज हो चुकी होगी। यूपी के चुनाव के पूर्व और चुनाव संग्राम के बीच बीच मे, मीडिया की भूमिका काफी संदिग्ध रही। चुनाव पूर्व कुछ टीवी चैनलों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि मुलायम/कांग्रेस की हवा चल रही है, धीरे धीरे ये हवा बह गयी, और बात उठी कि त्रिशंकु विधान-सभा होगी। बाद मे एक्जिट पोल का सहारा लेकर ये लोग चीख चीख कर कहने लगे, कि पक्का ही त्रिशंकु विधानसभा रहेगी। मायावती कहती रही कि हम पूर्ण बहुमत मे आएंगे, तो कई लोगो ने इसका मजाक उड़ाया। मीडिया वालों के चुनाव एक्सपर्ट, कभी यह बात मानने को तैयार ही नही थे कि किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा। अपने पक्ष मे वे ऐसे ऐसे आंकड़े दिखा रहे थे, कि अच्छे से अच्छा बन्दा भी गच्चा खा जाए। हालांकि कई बार वे आंकड़े, उन तथ्यों पर आधारित थे, जिनपर जमकर बहस हो सकती थी। सारे के सारे एक्जिट पोल मे एक ही रटा रटाया जवाब होता था, कि जो हम कह रहे है सही है। टीवी चैनल भी भेड़चाल के खेल मे आगे थे, एक दूसरे की देखा देखी मे कुछ सीट इधर उधर करके नतीजे दिखा रहे थे। चुनाव पूर्व सीन कुछ यूं था:
एनडीटीवी को लग रहा था राहुल और प्रियंका के द्वारा कांग्रेस की नैया पार लग जाएगी।
आजतक के प्रभु चावला अमर सिंह टाइप का राग अलाप रहे थे।
इन्डिया टीवी को सपा की साइकिल के अलावा कुछ और दिखाई ही नही दे रहा था।
हमारे राजनीतिक एक्सपर्ट मिर्जा साहब बोले:
आजकल तो कुछ ऐसे हो गया है कि पार्टियां खुद सर्वे एजेन्सी को ठेके पर लेती है..और चैनल वालों को पैसा खर्च नहीं करना होता। उधर हर टीवी न्यूज चैनल किसी ना किसी पार्टी के झंडे तले खड़ा दिखता है। यदि ऐसा है तो खुल कर करो ना, दक्षिण मे भी राजनीतिक पार्टियों के पास न्यूज चैनल है, वैसे करो ना, निष्पक्षता का राग काहे अलापते हो?
मायावती ने पहली प्रेस कॉफ्रेंस में मीडिया को लताड़ा और उनपर कटाक्ष करते हुए कहा था –
मैं चुनाव प्रचार के दौरान टीवी पर नहीं आई क्योंकि मैं देख रही थी कि मीडिया वाले अपना काम कर ही रहे हैं…जो उन्होंने किया वो तो दिख ही गया है..
मीडिया वाले रटे रटाए जवाब मे कहेंगे कि सर्वे करने वाली एजेन्सी की गलतिया थी, चलो माना कि गलतिया तो सभी से होती है, लेकिन क्या मीडिया वालों ने पिछली गलतियों से सबक लिया? क्या ईमानदारी से सामने आकर माफ़ी मांगी? सच तो यह है कि मीडिया की पहुँच गाँव देहात मे है ही नही, ये लोग शहर के किसी कोने मे सर्वे कराके ढोल पीटना शुरु कर देते है। पोलिंग एजेन्सी का पिछला रिकार्ड क्या था, ये किसके इशारे पर काम करती है, मीडिया वाले कभी नही सोचते। पिछली बार इन्डिया शाइनिंग के समय भी ऐसा हुआ, पंजाब के चुनावों के समय भी और इस बार भी। कोई भी मीडिया हाउस इस बात को मानने को तैयार नही होगा कि उस से गलती हुई, क्योंकि गलती स्वीकारने से टीआरपी जो घट जाएगी। लेकिन ये बात सच है कि इस हमाम मे सभी नंगे है। कोई कम और कोई ज्यादा। इनको आत्मविश्लेषण की सख्त जरुरत है।
मेरा सवाल यह है कि :
- यदि मीडिया के पास अधकचरी जानकारी (प्री/एक्जिट पोल) है तो वो सीना ठोक कर पब्लिक को काहे परोसते है?
- क्या मीडिया वाले ठेके की पत्रकारिता (पैसे लेकर प्रचार) करते है?
- आज मायावती मीडिया वालों की (ध्यान रखना सभी नोएडा मे बैठे है) क्लास ले सकती है कि इन लोगो की वजह से उसे कुछ वोट कम मिले, जो कि सत्य भी हो सकता है। तब मीडिया वाले क्या जवाब देंगे?
- आज फिर उन्हे माया के पक्ष मे पलटी मारनी पड़ेगी, जो कि हो ही रहा है, रंग बदलने मे नेताओ से भी आगे है ये मीडिया वाले। (ना मानो तो ये तीनो चैनल उठाकर देख लो, माया के पैदा होने से अब तक की गौरव गाथा दिखा रहे है)। तब क्या वे निष्पक्ष पत्रकारिता का राग अलाप सकेंगे?
- मीडिया की ओर से हमेशा बसपा को अंडरएस्टीमेट किया गया है.. कुछ लोग इसकी वजह मीडिया का ब्राह्मणवादी चरित्र मानते है। क्या ये बात सच है?
- निष्पक्षता तो बहुत दूर की बात है, ऐसे मे देश मे इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता का कौन भरोसा करेगा?
सवाल तो कई है, लेकिन जवाब ढूंढे नही मिल रहे है, मीडिया वाले ब्लॉगर भाई, (अगर ईमानदारी से) जवाब देना चाहे तो स्वागत है। आप क्या सोचते है इस बारे में?
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