मैने सितम्बर २००४ मे ब्लागिंग का सफर शुरु किया था, हिचकते हुए, घबराते हुए. दरअसल मेरे पास ३ महीने का समय था, अगला प्रोजेक्ट शुरु करने मे, यानि कि तीन महीने के लिये फुल्ली फालतू था. लिखने का कोई अनुभव तो था नही, कागज पर विचारों को उकेरने का प्रयास करता था, लेकिन कभी भी छपने नही भेजा. इन्टरनैट पर मटरगश्ती करते करते अचानक हिन्दी चिट्ठे दिख गये. तो हमने भी हिन्दी चिट्ठा लिखने की सोची, सबसे पहले तो मैने अपने एक अंग्रेजी चिट्ठे का हिन्दी रूपान्तर किया और भेज दिया देबू भाई को. बड़ी उम्मीदें थी कि हमारे चिट्ठे को भी “हिन्दी चिट्ठाकरों के वैबरिंग” मे शामिल कर लिया जायेगा. लेकिन अब इसे बदकिस्मती कहें या वक्त का तकाज़ा, एक दिन देबू भाई की इमेल आयी, ठीक वैसी ही जैसी संपादको से आती है, कि आपकी रचना हमारी पत्रिका मे छपने लायक नही है, थोड़ा और इम्प्रूव कीजिये, ज्यादा से ज्यादा रचनायें लिखिये, मन से लिखिये और सम्पर्क बनाये रखिये……….यानि कि जगह मिलने पर पास दिया जायेगा.
दिल को बड़ा धक्का लगा, मेरा आत्मविश्वास डगमगाने लगा, लेकिन हारना तो सीखा ही नही था, हम फिर जुट गये, उसी दिन ढेर सारे ब्लाग लिख डाले और फिर पहुँचे देबू भाई के द्वारे, इस बार पिछली गलतियों को सुधारकर गये थे, लेकिन शायद देबू भाई मेन्टली प्रिपेयर्ड नही थे, सो एक दो हफ्ते तक जवाब नही आया, जैसे मंत्रालय मे फाइल खो जाती है, ठीक वैसा ही हुआ, लेकिन जब हमने ठान ही ली थी, तो फिर क्या पीछे हटना, इसलिये फिर रिमाइन्डर पर रिमाइन्डर भेजे, अब शायद देबू भाई मेरे रिमाइन्डर से परेशान हो गये थे, या फिर बाकी ब्लागरों ने उन्हे मनाया, इसलिये मजबूरन उन्हे मेरी ब्लाग एक्सप्रेस “मेरा पन्ना” को हरी झन्डी देनी पड़ी. हम तो बल्ले बल्ले, फिर तो जब लिखना शुरु किया, तो पढने वाले भी मिलने लगे, दाद मिलने लगी, सुझाव और आलोचनायें आने लगी. ये क्या लिखते हो, वगैरहा वगैरहा, कुछ लोग थे, जो बोलते थे, अच्छा लिख रहे हो. भाई लोगों ने हमारे ब्लाग पर ब्लाग लिखे मारे.ये हौंसला अफ़जाई के लिये काफी था, बस शुरु हो गयी हमारी ब्लाग एक्सप्रेस, तक से लेकर अब तक, बस दौड़े जा रहे है.
दरअसल हमारी हिन्दी बोलचाल की हिन्दी थी, शुद्द हिन्दी लिखना तो अपने बूते से बाहर की बात थी, दूसरे शब्दों मे बोला जाये तो हमारी हिन्दी मे उर्दू, हिन्दी,भोजपूरी और पंजाबी का घालमेल था, अब उर्दू, हिन्दी और भोजपूरी तो अवधी ज़बान हुई, पंजाबी की मिक्सिंग दिल्ली मे आकर कुछ समय रहने की वजह से हुई, ऊपर से श्रीमतीजी पंजाबी परिवार से है, इसलिये कुल मिलाकर खिचड़ी भाषा से “मेरा पन्ना” आपके सामने आने लगा.
मै फारसी, हिब्रू और चीनी ब्लागरों को देखता था तो बड़ा रश्क होता था, सोचता था वो दिन कब आयेगा जब हम लोग हिन्दी मे चिट्ठे लिखेंगे और हिन्दुस्तान भर के लोग उन चिट्ठों को बड़े शौंक से पढेंगे, दरअसल इन्टरनैट पर हिन्दी मे पढने का मटैरियल तो था ही नही, जो कुछ था भी वो फोन्ट डाउनलोड वगैरहा के झमेले मे था, आम आदमी तो फोन्ट डाउनलोड वगैरहा करने से अक्सर घबराता था, ऊपर से किसी भी सर्च इन्जन मे हिन्दी सर्च का आप्शन नही था, ये तो भला हो गूगल भइया का जिन्होने यूनीकोड की मदद से हिन्दी सर्च का आप्शन दिया, अब हिन्दी मे ढूंढना हो तो बहुत आसान है, मेरे पास कई कई पाठक तो सिर्फ गूगल की वजह से ही आये. अब ये बात और है कि वो ढूंढ कुछ और रहे थे, गूगल भइया ने उनको मेरे ब्लाग पर पटक दिया.लेकिन ये बात जरूर है, जो एक बार आया, अगली बार टाइम निकालकर जरूर आया.
हिन्दी मे ब्लाग लिखने की शुरुवात की थी, आलोक भाई ने, ब्लाग को चिट्ठा का नाम भी उन्होने ही दिया था.लगभग एक साल तक तो आलोक भाई अकेले ही हिन्दी चिट्ठाकारी की अलख जगाते रहे, बाद मे देबाशीषभाई और पंकज भाई ने साथ दिया, फिर भी लिखने वाले कम ही थे, जो थे, वे भी अंग्रेजी मे ज्यादा लिखते थे, धीरे धीरे अतुल भाई, फुरसतिया और ठलुआजी पधारे, (कुछ और भाई लोगों का जिक्र छूट गया हो तो माफी चाहूँगा) तो हिन्दी चिट्ठाकारी का रूख ही बदल गया. बाद मे लिखने वालों की अलग अलग शैली बनी. आज अगर हिन्दी चिट्ठाकारी को देखें तो यह एक बगिया की तरह है, जो तरह तरह के फूलों से भरी हुई है, जिस तरह फूल अपनी सुगन्ध बिखेरकर माहौल को खुशनुमा बनाते है उसी तरह हमारे हिन्दी चिट्ठाकार अपनी जादुई लेखिनी से माहौल को खुशगवार बना रहे है. इनकी लेखनी हर तरह के विषयों पर चलती है. आज हम हिन्दी ब्लाग लिखने वाले लगभग ८० लोग हो गये है, और हम लगभग सभी विषयों पर लिखते है, एक दो विषय शायद छूट गयें है जैसे ट्रेवल, बच्चों के लिये और महिलाओं के लिये, लेकिन मेरा विश्वास है कि लोग उन विषयों पर भी लिखेंगे.हमारा प्रयास होना चाहिये कि हमारे ब्लाग रोचक और मजेदार हों, मै किसी को लिखने के लिये कोई उपदेश नही देना चाहता, आप कुछ भी लिखिये, आपका ब्लाग है, जो मन मे आये लिखिये ,लेकिन ऐसा लिखें जो पाठकों को बांधे रखे, ताकि पाठक बार बार पढने आयें और दूसरों को भी साथ लायें.जैसे जैसे भारत मे सूचना प्राद्योगिकी गाँवो कस्बों तक पहुँचेगी, इन्टरनैट पर हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं के लिखने और पढने वाले लोग बढने लगेंगे.कल शायद हम ना रहे, आप ना रहे, या हम में से कोई भी ना रहे, लेकिन हिन्दी ब्लाग जो आपने हमने बनाये है, वो हमेशा रहेंगे.
आज ब्लाग लिखने वाले काफी संख्या मे है. एक बार अतुल भाई से बात हो रही थी, कि हिन्दी बोलने वाले दुनिया मे इतने सारे है लेकिन लिखने वाले बस बीस पच्चीस, ये क्या माजरा है? मैने अतुल भाई को बोला, देखना जल्दी ही हम लोग बीस से पचास और पचास से सौ हो जायेंगे, लेकिन सिर्फ संख्या बढने से कुछ नही होगा, वो सारे ब्लागर एक्टिव भी होने चाहिये. क्योंकि हम सबका एक ही सपना है, वैब पर हिन्दी को उचित स्थान दिलाना. हम सभी चाहते है लोग बड़ी संख्या में आये और वैब पर हिन्दी पढे. हिन्दी भाषा मे तरह तरह की जानकारीपूर्ण साइट होनी चाहिये, वो भी बिना किसी फोन्ट के डाउनलोड के झमेले के.अब यूनीकोड के आने से ऐसा सम्भव दिखता है.
मेरी आदत है कि “मेरा पन्ना” पर आने वाले सभी पाठकों के बारे मे जानकारी रखता हूँ, और मुझे जानकर बहुत खुशी होती है, भारत मे उड़ीसा,आसाम जैसी सुदूर स्थानों से और विदेशों मे मारीशस,बेल्जियम,इटली,ग्रीस और ना जाने कितने देशों से लोग मेरे ब्लाग और दूसरे हिन्दी ब्लाग्स पर विजिट करते है, ये सचमुच अच्छी बात है, कि हमारे दिल मे हिन्दी के प्रति इतना प्यार है. यही मेरा मानना है कि
“यदि हम सोचते हिन्दी मे है तो लिखे अंग्रेजी मे क्यों, हम हिन्दी मे ज्यादा सहजता से अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते है”
मुझे आशा है कि ये परिवार यूँ ही बढता रहेगा, लोग आते रहेंगे,जुड़ते रहेंगे,अपनी लेखनी का जादू बिखेरते रहेंगे और हिन्दी को समृद्द करते रहेंगे, यही मेरा सपना है…….
और शायद हम सभी का भी ………
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