लगता है, आने वाला कुछ समय मनमोहन सिंह सरकार के लिये कुछ भारी है। इस सरकार ने कई कई गलतियां एक साथ की हैं।बीते हफ़्ते भारत सरकार ने ईरान और आईएईए के बीच विवाद मे ईरान के विरोध मे मतदान किया, उससे काफ़ी लोग आहत हैं। वामपन्थी तो वैसे ही डन्डा लेकर तैयार बैठे रहते हैं, सो उनका विरोध जायज था उधर बीजेपी वालो को (जो अभी अभी आपसी उठापटक से फ़ारिग हुए हैं) बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया है। हमने इस बारे मे हमारे राजनीतिक सलाहकार जनाब मिर्जा से उनकी राय सुनी, आइये आप भी पढियें:
देखो भइये! ईरान और भारत के बहुत ही मधुर सम्बंध रहे है। और दोनो मे व्यापरिक रिशते भी बहुत गहरे है। मध्यपूर्व के क्षेत्र मे ईरान और सीरिया ही ऐसे देश है जिनके संम्बंध हिन्दुस्तान से बहुत गहरे और दोस्ताना हैं। इस समय ये दोनो देश ही अमरीका के निशाने पर हैं, अब पहले किसका नम्बर है ये तो कहना मुशकिल है। लेकिन ये पक्का है कि अमरीका दोबारा अपने हथियार टेस्ट करना चाहता है, वो भी दूसरों के खर्च पर, इसलिये वो ये मौका चूकेगा नही। मतलब जल्द ही युद्द का बिगुल बजने वाला है, ये सब उसकी प्रारम्भिक तैयारी है।
भारत ने ईरान के खिलाफ़ जाकर अपने राजनैतिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक हितो की अनदेखी की है, जिसका खामियाजा उसे जल्दी ही भुगतना पड़ेगा। कूट्नीति मे कोई भी किसी का स्थायी दुश्मन या दोस्त नही होता, बस अपने अपने हित साधने होते है। यदि भारत चाहता तो इस मुद्दे का इस्तेमाल वो अमरीका पर सुरक्षा परिषद की सीट को लेकर दबाव बनाने मे कर सकता था, लेकिन बुश ने साफ़ शब्दों मे जापान की दावेदारी का समर्थन करके भारत को ठेंगा दिखाया। उसके बाद भी भारत का ईरान के खिलाफ़ मतदान करना समझ से परे है। ये भारत की एक बहुत बड़ी कूटनीतिक हार है।ये निश्चय ही अमरीका के दबाव मे लिया गया फ़ैसला है।ईरान के रुप मे भारत ने पश्चिम एशिया मे एक अच्छा साझीदार और विश्वसनीय दोस्त को खोया है। और एक बार फ़िर अमरीका का पिछ्लग्गू दिखने की कोशिश की है। मेरे को एक हिन्दी फ़िल्म का गाना याद आ रहा है, जो यहाँ एकदम फ़िट बैठ रहा है
जो तुमको हो वो पसन्द वही बात कहेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे
मैने सवाल किया:अब मनमोहन सिंह क्या करेंगे?
मिर्जा बोले:” करेंगे क्या? बस अमरीका के अगले आदेश का इन्तजार करेंगे।”
ये तो थी मिर्जा की राय, आपकी क्या राय है इस बारे मैं?
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