बहुत दिनो से भाई लोग बोल रहे है, लिखते क्यों नही, क्या कलम बेच खायी है या ज्यादा भाव खाकर लिखोगे? अब किसी से क्या बताया जाय,कि हमारा क्या हाल है, सो हमने सोचा कि चलो, जब सारी बातें पब्लिक से शेयर करते है तो अपनी परेशानी भी, सो भई आप भी सुनिये हमारी व्यथा कथा.
अब भाई, घर वाले कम्पयूटर मे बहुत दिनो से हम बिल्लू भइया के विन्डोज एक्सपी को झेल रहे थे. कम्पयूटर मे ढेर सारे वायरस और स्पाइवेयर डेरा डाले हुए थे. जहाँ इन्टरनेट कनैक्ट करो तो सारी की सारी बैन्डविडथ की ऐसी की तैसी कर देते थे. अब हम करें भी तो क्या करें, पहले पहल तो एक स्पाइवेयर रिमूवर लगाया, उसने अच्छा काम किया, लेकिन प्रोबलम ये होती थी कि इन्टरनैट के शुरु होते हो वो अपने हैडआफिस से कनैक्ट हो जाता था और फिर दे दना दन, दे दना दन बतियाना शुरु हो जाता था, हमारे पन्ने खुले ना खुले, उनका बतियाना जारी रहता था.बिल्कुल आफिस की टैलीफोन आपरेटर वाला हाल था.जिसको आफिशियल फोन कम और पर्सनल फोन करना ज्यादा पसन्द होता है. और अगर कुछ कहो तो गरियाना चालू कर देती है. अब कुछ दिनो तक तो स्पाईवेयर से मुक्ति मिल गयी, लेकिन दूसरी परेशानी शुरु हो गयी, थोड़े दिनो बाद स्पाइवेयर वाले तगादा करने लगे, बोले पैसे दो नही तो काम नही करेंगे. अब हम ठहरे कानपुरी, ढेर सारी मिले बन्द होते अपनी आंखो से देखे थे, यूनियनबाजी के चक्कर मे. अब हमारे कम्पयूटर पर भी ऐसी दादागिरी कि समझ मे नही आ रहा था कि क्या किया जाय, हमने पैसे ना देने का साहसिक निर्णय लिया और उसको हटाने की कोशिश की, अब किसी तरह से हट तो गया, लेकिन जाते जाते अपना ‘स्पाइवेयर’ छोड़ गया. अब इसको हटाने के लिये किसकी मदद ली जाये. हम भी मतवाले, एक दादा से पीछा छुड़ाने के चक्कर मे दूसरे दादा का हाथ थामते रहे, और ये क्रम जारी रहा. ऐसी हालत हो गयी कि एक भाई आता था, दूसरा जाता था. सारे भाइयो को हमारे घर का पता मिल चुका था. अब इनसे ना तो दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी.इसी बीच बिल्लू भइया ने अपना स्पाइवेयर थमाया बोले, ये अच्छा है,सुन्दर है, और फ्री भी. वैसे तो बिल्लू भइया के माल पर हमारा यकीन नही है, लेकिन पता चला कि अभी किसी कम्पनी को ‘टेकओवर’ किया है उसी के माल को बाजार मे टिका रहे है, वो भी फ्री, तो हमने कहा चलो ठीक है, दान की बछिया के दाँत नही देखे जाते, सो उसको भी इन्सटाल कर दिया. अब जनाब ये तो और गुरु,पहुँची हुई चीज,घर का भेदी, पल पल की जानकारी अपने आका को देने मे जुटा था.खबरे पहुँचाने मे हमारी बिटिया को भी मात दे रहा था. यहाँ हम छींक भी दे, तो वहाँ बिल्लू को पता चल जाता था.सारी खबरे वहाँ दे रहा था, बीबीजी अगर हमे डाँट भी लगा दे, तो भी वो बिल्लू को पता चल जाता था. रामायण मे भी कहा गया है कि घर का भेदी लंका ढाए….फिर साहसिक फैसला हुआ, कि इसको हटाया जाय,लेकिन अब जिन्दगी जो है इन साफ्टवेयरो की गुलाम दिख रही थी. बस लगाओ हटाओ का ही काम हो रहा था.इसका हटाया, तब भी कंही ना कंही इसके अवशेष मौजूद थे, जो इन्टरनेट के कनैक्ट होते ही, एक्टिव हो जाते थे. हमारी हालत तो बिल्कुल खराब हो रही थी.अब बिल्लू के लिये मन मे जो एक दो परसेन्ट इज्जत बची थी, वो भी बाहर निकलने के लिये रास्ता तलाश कर रही थी, हमने मन को समझाया कि जैसे अच्छे दिन नही रहे वैसे ये स्पाईवेयर भी ज्यादा दिन नही रहेंगे, लेकिन दिल है कि मानता नही, बोला कि ये फिल्मी डायलाग है, अपने ब्लाग मे ही लिखना, कुछ काम धाम करना है तो बिल्लू की खिड़की से छुटकारा पाने का तरीका ढूँढो, नही तो बेटा लेगे रहो , लगाओ हटाओ के फेर मे.
बात मे वजन था, सो खोज शुरु की गयी, जो लीनिक्स से शुरु होकर लीनिक्स पर ही खत्म हुई. अब इसके लिये मेरे को कोई गुरू चाहिये थे, जो हमारा मार्गदर्शन करते, फिर लीनिक्स की तो भीड़ लगी है बाजार मे कौन सा लगाया जाय. इसके लिये अपने चिट्ठाकार मित्रो को सम्पर्क किया गया, अपने फोरम मे भी लिखा गया, काफी जवाब आये, और लीनिक्स के लिये राह आसान हुई.अब चूँकि ये बहुत लम्बी रामकहानी है, इसलिये अब इस बारे मे अगली पोस्ट मे लिखा जायेगा. आज के लिये इतना ही, वैसे ही ढेर सारा काम पड़ा है, और देबाशीष बाबू भी पत्रिका के मुत्तालिक डन्डा लेकर पीछे पड़े है, और हाँ अपने खिड़की से जितनी जल्दी छुटकारा पाओ उतना अच्छा. क्या? नही! ठीक है फिर झेलते रहो.
तो भइया राम राम, पढते रहना. आपका अपना पन्ना
Leave a Reply