आखिर कांग्रेस अपने पुराने हथकन्डो को अपनाने के लिये मजबूर हो ही गयी. यूपीए सरकार ने एनडीए सरकार के समय मे हुए घोटालो की जाँच के चार मंत्रियों की एक अनौपचारिक समिति का गठन किया गया है जिसकी अध्यक्षता प्रणव मुकर्जी करेंगे और जिसमें अर्जुन सिंह, शिवराज पाटिल और ग़ुलाम नबी आज़ाद होंगे.मेरे ख्याल से लालू की कमी सबको खल रही होगी.वैसे लालू अपने तरीके से इस काम मे लगे है.
यह सस्ती राजनीति है, कांग्रेस पहले भी ऐसा करती रही है, नतीजा ढाक के तीन पात.ये सरकार विकास के कामो पर अपना ध्यान क्यो नही देती? क्या इन सब कामो के लिये लोगो ने इन्हे संसद मे भेजा था? मेरे ख्याल से इस प्रकार की राजनीति करने से, दोनो दलो (पक्ष और विपक्ष) मे एक दूसरे के काले कारनामो को उजागर करने की होड़ लग जायेगी, और विकास का मुद्दा कही पीछे छूट जायेगा.
वैसे भी कांग्रेस जो जार्ज फर्नांडिस का संसद मे बहिष्कार करती थी, आज तक ताबूत घोटाले को साबित नही कर सकी है.यह सब जबानी जमाखर्च है, जनता का ध्यान बंटाने के लिये.
अभी तक बीजेपी ने इस पर अपनी सतर्क प्रतिक्रिया दी है,बीजेपी के सचिव मुख़्तार अब्बास नक्वी कहते हैं, “हमारे सरकार के शासनकाल के दौरान जो इलज़ाम लगे थे यदि उसके बारे में ये लोग कोई जाँच करवाना चाहते हैं तो उसका स्वागत है.” मेरे विचार से यह दबाव की राजनीति कही कांग्रेस को महंगी न पड़ जाये, क्योकि जहाँ तक भष्टाचार का सवाल है एनडीए कही भी यूपीए के सामने नही ठहरती
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