बउवा पुराण

उस दिन की घटना के बाद वर्माजी ने बउवा को अपने घर पर रख तो लिया लेकिन उस बार ढेर सारी पाबन्दियां लगा दी….. साथ ही ये भी ताकीद कर दी कि मोहल्ले के लड़कों से ना उलझे और किसी भी तरह से पहलवान के घर की तरफ ना जाये. अब यहाँ पर पहलवान की बीबी का जिक्र ना करना,उसके साथ बहुत नाइन्साफी होगी…अभी तक हमने उसका नामकरण नही किया था,सो इस कमी को भी पूरा कर देते है. सभी लोग उसको रोशनी के नाम से जानते थे.तो जनाब इस घटना के बाद रोशनी के जीवन मे फिर अन्धकार छा गया…क्योंकि पहलवान ने उस पर बहुत जबरदस्त पहरेदारी शुरू कर दी थी, एक मिनट के लिये भी उसको अकेला नही छोड़ता था…….सिवाय शाम को चाट वाले ठेले के आने पर…….. अरे भाई, पहलवान को चाट से बहुत चिढ थी, और रोशनी बहुत बड़ी चटोरी थी……..गोलगप्पे खाने मे उसका तो कोई सानी नही था..कई बार पहलवान ने समझाया…मगर नही….रोजाना शाम को चाटवाला उसके घर से ही बोनी शुरू करता था, उसके बाद ही कंही और जाता था.

उधर बउवा की नौकरी, मोहल्ले के अरोड़ा आटा चक्की मे लग गयी, नही नही भाई ये अतुल अरोरा वाली चक्की नही थी……ये तो कोई और जनाब थे.बउवा की ड्यूटी थी, गेंहू पिसवाने वाले के लिये लोगो के घर से गेहूँ लाना, तौलवाना,पिसवाने के मशीन का सुपरविजन करना, आटा तौलवाना और आटे के टिनो को घर पर छोड़कर आना…… पहले पहल बउवा को काम पसन्द नही आया, लेकिन बाद मे जब लोगो के घर मे बहू बेटियो से मुलाकात होने लगी तो उसको इस काम मे मजा आने लगा, और वो मन लगाकर और दौड़ दौड़कर यह काम करने लगा, चक्की वाले अरोड़ा जी उसकी इस लगन को देखकर बहुत खुश थे और तरक्की के रूप मे उसको एक साइकिल भी लेकर दिये…… इधर बउवा तो पुराना खिलाड़ी था, फिर शुरु हो गया था, अपने पुराने काम धन्धे पर…..मोहल्ले मे उसकी शिकायते मिलने लगी थी, अक्सर लोगो के घरो मे घुस जाता था, अब तो उसके पास बहाना भी था…कोई भी कुछ कह नही पाता था.दूसरी तरफ मोहल्ले के लड़के भी बउवा को भुला चुके थे, जब तक हमारे कानो मे बउवा की शिकायते नही पहुँची…

बउवा तो अपने काम मे रम गया और मोहल्ले के लड़को को भूल गया , लेकिन वर्माजी चुप बैठने वालों मे कहाँ थे, एक दिन हमारे ग्रुप के लड़के को पकड़ कर जम कर पिटाई कर दी, उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वो वर्मा की स्कूटर पर हाथ रखकर खड़ा था.. और वर्मा को शक था कि उनके स्कूटर के पंचर होने मे इस लड़के का हाथ है…………अब इस पिटायी कान्ड से हमने वर्मा एन्ड कम्पनी के सारे चिट्ठे दोबारा खोलने शुरू कर दिये., और हम भी फिर इन्तजार करने लगे….. अच्छे मौके का.हमारी टीम की बैठक हुई और हमने प्रण किया कि वर्मा से बदला लेकर रहेंगे…..इधर बउवा की शिकायते ज्यादा आने लगी तो मोहल्ले के बुजुर्गो ने भी हमे चेताया कि हम लोगो के होते हुए, बउवा ऐसी हरकते कैसे कर रहा है.बस फिर क्या था….

हम लोगो ने बजरंगी चाट वाले को पटाया…..और क्योंकि वही लिंक था, रोशनी से बात करने का, इसके अलावा तो कोई और रास्ता नही था. हमने बजरंगी को बोला कि रोशनी को कुछ दिन चाट फ्री मे खिलाई जाय, और अगर रोशनी पैसे देने की कोशिश करे तो उसको बताया जाय कि बउवा ने चाट के पैसे पहले से ही दे दिये है.ऐसा लगभग एक हफ्ते तक चला…हफ्ते के आखिरी दिन चाट वाले ने हम लोगो द्वारा भेजी गयी एक पर्ची रोशनी के हाथ मे थमायी,जिसमे लिखा था

अगर कुछ कहना है तो चाट वाले को लिख कर दे देना, तुम्हारा दीवाना………………..

रोशनी के दिल मे बउवा के प्रति प्यार फिर से उमड़ने लगा……लेकिन पहलवान के डर से कुछ लिख नही पा रही थी…….बस सही समय था….तो हम लोगो ने रोशनी की तरफ से बउवा को एक प्रेम पत्र लिखा…..जिसका मसौदा कुछ इस प्रकार था………………

‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ शेष अगले अंक मे

One response to “बउवा पुराण”

  1. […] हर कथाकार अपने कुछ खास चरित्र बनाते हैं। जीतेंद्र ने भी मिर्जा,छुट्टन,पप्पू,बउआ,छोटू आदि को अपने गैंग में शामिल किया। आजकल दिख नहीं रहे हैं वे ,लगता है कि दोनों में खटपट चल रही है। जीतेंद्र बताते हैं कि छुट्टन के कारण लोग उनको कहते हैं कि किन लोगों का साथ है तुम्हारा। उधर छुट्टन का रोना यह है कि भइया पेट के लिये आदमी को सब कुछ करना पड़ता है,जिस जगह हम अपनी मर्जी से जाना नहीं चाहते वहाँ उछलना कूदना पड़ता है। […]

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