परमाणु समझौता: विभिन्न पहलू

दोनो पक्षों ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताया है इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी ने भी इसे एक अच्छा कदम बताया है। आइये देखते है दोनो पक्ष अपने अपने नजरिये से इस समझौते को कैसे देखते हैं:

भारत का नजरिया
भारत इस सौदे को अभूतपूर्व और ऐतिहासिक मानता है क्योंकि

  1. इस से भारत साउथ एशिया मे अमरीका का सबसे बड़ा सहयोगी बन जायेगा।
  2. भारत को परमाणु सम्पन्न देश का दर्जा मिल जायेगा।
  3. भारत को अपनी शर्तों पर परमाणु ईधन और साजो-सामान मिलेगा
  4. बिना परमाणु अप्रसार संधि किए ये समझौता हो रहा है।
  5. अमरीका का सामरिक सहयोगी होने से रुतबा बढेगा।
  6. अमरीका का निकट सहयोगी बनने से सुरक्षा परिषद मे स्थायी सीट मिलने का रास्ता साफ हो जायेगा।
  7. पाकिस्तान पर दबाव बढेगा।

अमरीका का नजरिया

  1. एशिया मे शक्ति संतुलन।
  2. चीन पर परोक्ष रुप से दबाव
  3. ईरान मसले पर सहयोग की आकांक्षा।
  4. भारत की यूरेनियम संवर्द्वन की तकनीक पाने की उम्मीद

मेरे विचार
मै इसे अभूतपूर्व नही मानता, क्योंकि अमरीका पहले भी परमाणु ईधन का वादा करके मुकर चुका है।रही बात शक्ति संतुलन की, तो अमरीका को एक मोहरा चाहिये और भारत इस जाल मे फ़ंस रहा है।रही बात सुरक्षा परिषद की सीट की, वो तो अमरीका अभी नही देने वाला, अलबत्ता ईरान मसले पर भारत अमरीका के पक्ष मे झुकता दिखता है।कुल मिलाकर, भारत सिर्फ और सिर्फ आश्वासन पर अपने स्टैन्ड को बदल रहा है, कंही दीर्घ काल मे उसे यह मंहगा ना पड़ जाय।सामने से देखने पर ये समझौता भारत के पक्ष मे दिखता है, लेकिन क्या बन्द कमरों मे बैठकर हमने अमरीका से कुछ गुपचुप वादे किये हैं? ये देखने वाली बात होगी।

भारत को यदि महाशक्ति बनना है, तो उसे सबसे पहले अपने पड़ोसियों से सम्बंध सुधारने पड़ेंगे, फिर अर्थव्यवस्था को और मजबूत करना पड़ेगा, विकास दर सही रखनी पड़ेगी, और सबसे बड़ी बात, बुनियादी सुविधाओं को और बढाना होगा। उसके बाद ही हम भारत को महाशक्ति के रुप मे देखने की सोच सकते है।

आपके क्या विचार है इस पर, जरुर लिखियेगा। टिप्पणी मे ना सही, अपने ब्लॉग पर ही।

One response to “परमाणु समझौता: विभिन्न पहलू”

  1. Pratik Pandey Avatar

    मुझे नहीं लगता कि अमेरिका इस समझौते से मुकर सकता है। पहले वह इसलिये अपने कहे से पलट सका, क्योंकि वे तथाकथित समझौते सिर्फ़ ज़बानी थे और उन्हें अमरीकी सीनेट और काँग्रेस का समर्थन हासिल नहीं था। लेकिन इस बार जॉर्ज बुश को इस समझौते का मसौदा दोनों अमेरिकी सदनों में पेश कर उन्हें वहाँ पास कराना पड़ेगा। अगर एक बार काँग्रेस और सीनेट का ठप्पा इस परमाणु समझौत पर लग गया, तो अमेरिका के लिये इससे पलटना बहुत ही मुश्किल होगा। इस क़रार से मुकरने से ख़ुद अमेरिका की साख़ पर बट्टा लगेगा।

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