दस फिल्म की समीक्षा

दस -बस थोड़ी मेहनत और करते

DUS

कल ही फिल्म दस देखने का मौका मिला. फिल्म बड़े कलाकारों से भरी पड़ी है, संजय दत्त, सुनील शेट्टी, अभिषेक बच्चन, ज़ाइद खान, पंकज कपूर, शिल्पा शेट्टी, दिया मिर्जा और राइमा सेन. क्या कलाकारों की भीड़ जुटा लेने से ही फिल्मे चलती है? नही. एक अच्छी फिल्म को बनाने के लिये चहिये होती है, एक शानदार स्टोरी, जबरदस्त पटकथा, सुलझा और सधा हुआ डायरेक्शन और कलाकारों की जानदार एक्टिंग. इस फिल्म को यादगार रखने लायक अगर कोई चीज है तो वे है पंकज कपूर की जानदार एक्टिंग. हर सीन मे उन्होने दूसरे कलाकारों को चित्त कर दिया है. हालांकि उनके पास करने के लिये ज्यादा स्कोप नही था, फिर भी बहुत प्रभावशाली रहे.

स्टोरी, पहली रील से ही भटकी हुई दिखाई दे रही थी, निर्देशक अनुभव सिन्हा, ने तो लगता है दूसरी रील से ही निर्देशन का काम सहयोगियों पर छोड़कर टहलने निकल गये थे. संजय दत्त रोल मे जमे तो है, लेकिन एक्टिंग पर कुछ और ज्यादा जोर दिया जाना चाहिये, जाहिर है कमी निर्देशक की तरफ से है. सुनील शेट्टी, यार! कब ओवर एक्टिंग छोड़ोगे? अभिषक बच्चन और ज़ाइद, ने अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी, भविष्य उज्जवल है. शिल्पा शेट्टी ठीक ठाक ही रहीं है, बाकी लड़कियों को फालतू का डाला गया है. उनके बिना भी काम चल सकता था. कई सीन तो हुबहू हालीवुड की फिल्मों से उठाये गये है.

टाइटिल सांग काफी अच्छा बन पड़ा है, इसका श्रेय जाता है नये संगीतकार विशाल शेखर को, लेकिन फिल्म मे बाकी गानों की गुन्जाइश ही नही थी. बैकग्राउन्ड म्यूजिक अच्छा है और फोटोग्राफी बेहतरीन है.कुल मिलाकर….यदि इस फिल्म को दिखाने के लिये आपको फ्री का डिनर करवाये तो ठीक है (मुझे तो छुट्टन मियां के हाथ का बना खाना खाना था, इसलिये झेली), वरना थोड़े दिनो मे कोई ना कोई चैनल तो दिखा ही देगा.

फिल्म की आफिशयल साइट कंही ढूंढे नही मिली , विस्तृत विश्लेषण यहाँ देखें और संगीत यहाँ सुने.

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