अभी पिछले दिनो राहुल गाँधी की एक सभा मे चप्पल पहनने वालो को बाहर रोका गया था, काहे? अरे पता नही क्या? इन दिनो राजनेताओं पर जूते चप्पलों से हमला हो रहा है। सबसे पहले जार्जबुश, फिर जरदारी, ब्लेयर, उमर अब्दुल्ला, चिदम्बरम और ना जाने कौन कौन। आजकल तो अगर अपनी सभा को सुर्खियों मे लाना हो बस किराए पर जुते चप्पल उछालने वालों को बुलवा लो। बिना कुछ ज्यादा खर्चा किए, बुश और ब्लेयर की बराबरी मे आ जाओगे। हमे भी लगता है अगली ब्लॉगर मीटिंग मे जूते चप्पलें उछलवा दें, लेकिन दिक्कत ये है कि उछालेगा कौन, फिर कोई धकाड़ ब्लॉगर भी तो चाहिए, जिसके ऊपर चप्पलें उछले फिर भी वो मुस्कराएं, समीर लाल से बात करके देखते है। माशा अल्लाह बॉडी भी काफी अच्छी है, चाहे जित्ते जूते चप्पल उछलें, मजाल है कि चेहरे से मुस्कान गायब हो, अपनी टिप्पणी मशीन के साथ दन्न से धन्यवाद की टिप्पणी टिका देंगे, चप्पल उछालने वाले को। और हाँ ब्लॉग लिखने का मशवरा भी दे डालेंगे। लेकिन समीर लाल तो विदेश मे है, आने जाने का बिल टिका दिया तो ब्लॉगर कमिटी कर्जे मे डूब जाएगी। चलो फुरसतिया से बात करके देखते है। लेकिन वो तो अभी बादल और बाढ की समस्या मे उलझे हुए है।
बाढ और बादल से तो दिल्ली भी जूझ रही है। ऊपर से ट्रैफिक जाम की समस्या है सो अलग। कॉमनवेल्थ से वेल्थ तो कलमाडी पहले ही लेकर निकल चुके है, जो बचा है वो बस कॉमन सा ही है। अब तो लगता है कॉमनवेल्थ के ऊपर संकट के बादल मँडराने लगे है। अब तो लोग ढेर सारी बाते करने लगे है, लगता है ये कॉमनवेल्थ वाला किस्सा यहीं थमेगा नही। नेता तो नेता, खिलाड़ी भी सकते में है। आधे डेंगू से बीमार, आधे कोई बैन दवा खाकर टुन्न। लो अब करा लो कॉमवेल्थ। अमां अगर दवा खानी तो ऐसी खाते जो पकड़ी ना जाती, वैसे भी मैडल शैडल तो जीतते नही, दवा खाकर देश की बदनामी करे हो सो अलग।
बदनामी अकेले एथलीटों ने कराई हो ऐसा नही है, पाकिस्तानियों से पूछो, उनके क्रिकेट खिलाड़ियों ने तो उन्हे कंही का नही छोड़ा। अब बताओ, नो बॉल फेंकने के भी कोई पैसे लेता है? इत्ता टुच्चा आरोप, हमारे खिलाड़ी तो बिना पैसे लिए ही नोबॉल फेंकते है। श्रीलंका का रणवीर तो बेचारा इसी गम मे बावंरा हो गया है, कि अगर तीन नोबॉल के दस हजार पाउंड मिलते है, उसने तो सैकड़ो नोबॉल बिना पैसे लिए फेंकी, इत्ता नुकसान? बताओ जब पैसे बँट रहे थे तो ये कहाँ सो रहा था?
सोने से याद आया, मैंगलोर विमान हादसा कुछ याद आया? जब प्लेन मैंगलोर हवाई अड्डे के रनवे पर लैंड करते करते, बगल मे एक खाई मे गिर गया था, काफी लोग मरे थे, अब पता चला है कि एक पाइलट उस समय सो रहा था। अमां ये भी कोई सोने का वक्त था? ड्यूटी पर सोना ऑलाउड नही है, ड्यूटी पर सिर्फ़ नेता लोग सोते है, ना मानो तो लोकसभा/राज्यसभा का चैनल देख लो। या तो नेता सोते मिलेंगे या फिर लड़ते हुए। उनको देखते हुए आप ना सोने लगो तो कहना। मै तो सरकार से दरख्वास्त करुंगा कि इस चैनल की लाइव रिकार्डिंग रात को भी दिखाएं, ताकि थके हारे देशवासी लोरी की जगह ये चैनल देखकर सकून से सो सकें। लेकिन इस रिकार्डिंग को प्रायोजित कौन सी कम्पनी करेगी? प्रायोजक तो क्रिकेट और फिल्म वालों के आसपास ही टहलते रहते है, नेताओं को कौन पूछे?
फिल्म से याद आया, दो खबरें, एक तो ब्रिटनी स्पियर्स के बॉडीगार्ड ने आरोप लगाया है कि ब्रिटनी उसको रात के समय अपने बैडरुम मे बुलाती थी। क्या कहा? ऐसा? नही यार! ऐसा नही हो सकता? लेकिन इसमे आरोप कहाँ है? ये तो इन्वीटेशन हुआ? अब इस बांवरे बॉडीगार्ड को कौन समझाए, इंवीटेशन और आरोप मे फर्क। लगता है कंफ़्यूजन हो गया इसको। ऐसा ही एक आरोप एक्टर शाइनी आहूजा की नौकरानी ने लगाया था कि शाइनी आहूजा ने उसके साथ रेप किया है। अब आरोप तो आरोप, शाइनी दन्न से जेल के अंदर। शाइनी बोलता रहा, कि सबकुछ रजामंदी से होता था। लेकिन पुलिस वाले क्यों माने? बड़ी हस्ती अगर जेल जाएगी तो कैदियों का भी मनोरंजन होगा, यही सोचकर बुक कर दिया। अब इत्ते दिनो बाद, नौकरानी को याद आया कि रेप तो हुआ ही नही था। इसे कहते है कंफ़्यूजन का शिकार , अमां जब रेप नही हुआ था तो शाइनी को जेल मे बंद काहे करवाया? उस बेचारे को इत्ते दिन पुराने कैदियों के मनोरंजन का शिकार होना पड़ा ना। कहने वाले लोग तो यहाँ तक कह रहे है कि नौकरानी का रेप हुआ हो या ना हुआ हो, शाइनी का जेल मे…….अब हम काहे कुछ कहें। आप खुद ही समझदार हो। अब आप खुद ही डिसीजन लें।
डिसीजन तो हमने भी ले लिया है, एक ठो नही दो दो। अव्वल कि आज (9 सितम्बर को) हमारा जन्मदिन है(अब ये डिसीजन नही है, आगे पढो) लेकिन हम मनाएंगे नही। सुबह से फोन अटैंड करते करते, और दोस्तों को सफाई देते देते थक गए है कि हमारे आज पैदा होने मे हमारी कोई गलती नही थी, लेकिन कोई माने तब ना। बिना कुछ खिलाए पिलाए काम बनेगा नही। लेकिन हम भी अडिग है पार्टी ना देंगे, अगर दोस्त यार आकर पार्टी (बिना बिल टिकाए) दे जाएं तो अलग बात है। दूसरा डिसीजन कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारिया देखने हम स्वयं दिल्ली आ रहे है, अगले हफ़्ते। जिनको भी मिलना मिलाना हो तो इमेल से सम्पर्क करें। पूरे पंद्रह दिन दिल्ली मे डटे रहेंगे। देखते है, गेम्स की तैयारियां कैसे नही पूरी होती है। अच्छा भैया अब हम दुकान बढाते है, बहुत हो गया, बीबीजी की आवाज आयी है, नहा लो, सुबह से ऐसे ही बैठे हो। आदमी ब्लॉग और बाहर की दुनिया मे जाहे जित्ता बड़ा शेर हो, घर मे चूहा ही होता है।
चलते चलते :
ईश्वर की माया भी अजीब है। चूहा बिल्ली से डरता है, बिल्ली कुत्ते से, कुत्ता शेर से, शेर आदमी से, आदमी बीबी से और बीबी चूहे से।
तो फिर आते रहिए, पढते रहिए, आपका पसंदीदा ब्लॉग, अगली पोस्ट तक के लिए नमस्कार।
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