कैसे सुकून पाऊं तुझे देखने के बाद
अब क्या ग़़जल सुनाऊं तुझे देखने के बाद
आवाज़ दे रही है मेरी ज़िन्दगी मुझे
जाऊं मैं या न जाऊं तुझे देखने के बाद
काबे का एहतराम भी मेरी नज़र में है
सर किस तरफ़ झुकाऊं तुझे देखने के बाद
तेरी निगाह-ए-मस्त ने मख्म़ूर कर दिया
क्या मैकदे को जाऊं तुझे देखने के बाद
नज़रों में ताब-ए-दीद ही बाक़ी नहीं रही
किस से नज़र मिलाऊं तुझे देखने के बाद
-सईद शाहीदी
Leave a Reply