कहते है, कभी कभी कोई गीत, सुबह सुबह आप सुन ले तो वो गीत आपके जहन पर पूरा दिन रहता है। आप सारा दिन वो गीत, गाते गुनगुनाते रहते है। लेकिन उन गीतों का क्या, जो आप एक बार सुन लें उनकी छाप काफी दिनों आपके जहन से नही हटती।
आइए ऐसे ही एक गीत की बात करें। आज ही मैने ये गीत सुबह सुबह रेडियो फरिशता पर सुना और इस बारे मे लिखे बिना ना रह सका। ये गीत है, फिल्म शंकर हुसैन का, गाया है हरदिल अजीज जनाब मौहम्मद रफी साहब ने और संगीत से संवारा है, खय्याम साहब ने। मेरा दावा है कि आप इस गीत के बोलों को पढने के तुरंत बाद, इसको सुनने की को बेताब होंगे, इसलिए मैने यूट्यूब का वीडियो का लिंक भी इस गीत के बोलों के साथ नीचे दिया है। उम्मीद है आपको पसन्द आएगा।
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख्वाबों की बांहो मे पाकर, कभी नींद मे मुस्कराती तो होगी
उसी नींद मे कसमसा कसमसा कर, सिरहाने से तकिए गिराती तो होगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की….
वही ख्वाब दिन की मुंडेरो पे आके, उसे मन ही मन मे लुभाते तो होंगे
कई साज सीने की खामोशियों मे, मेरी याद से झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों मे, मेरी धुन मे कुछ गुनगुनाती तो हीगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की…..
चलो खत लिखें जी मे आता तो होगा, मगर अंगुलियां कपकपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा, उमंगे कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर, वो दाँतों मे अंगुली दबाती तो होगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की…..
जबान से कभी उफ़्फ़ निकलती तो होगी, बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कंही के कंही पाँव पड़ते तो होंगे, जमीन पर दुपट्टा लटकता होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी, कभी रात को दिन बताती तो होगी
कंही एक मासूम नाजुक सी लड़की…..
फिल्म : शंकर हुसैन (1977)
गायक : मोहम्मद रफी
संगीतकार : खैय्याम साहब
ये रहा यूट्यूब पर इसका वीडियो : (ये फिल्म से नही उठाया गया है, अलग वीडियो है, बैकग्राउंड मे गीत है।)
साभार : यूट्यूब
इस गीत मे कम से कम साजों का प्रयोग हुआ है और रफी साहब की दिलकश आवाज ने इसमे वो रंग भर दिया है कि आप अपने आपको इस गीत से बंधा पाते है। यदि आप (मेरी तरह) मोहम्मद रफी साहब के प्रशंसक है तो इस गीत को सुनकर टिप्पणी किए बिना रहेंगे। तो बताइए आपको रफी साहब का कौन सा गीत सबसे ज्यादा पसंद है।
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