धरती अति सुन्दर किताब
चाँद सूरज की जिल्द वाली
पर खुदाया यह दुख—
भूख‚ सहम और गुलामी
यह तेरी इबादत है
या प्रूफ की गलतियाँ।
-अमृता प्रीतम
अभी पिछले दिनो, जानी मानी साहित्यकार अमृता प्रीतम ने लम्बी बीमारी के बाद अपने प्राण त्यागे। वे ८६ साल की थी, और दक्षिणी दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थी।अब वे हमारे बीच नही है, लेकिन उनकी कवितायें,कहानिया, नज्में और संस्मरण सदैव ही हमारे बीच रहेंगे। अमृता जी पिछले तीन चार सालों से बीमार चल रही थी, लेकिन दु:ख की बात यह है कि उनके अंतिम समय मे हिन्दी साहित्यकारों मे से एक दो को छोड़कर कोई भी उनसे मिलने नही आया। यह हिन्दी साहित्यकारों की उपेक्षा का जीता जागता उदाहरण है।
अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ मे गुजरांवाला (पंजाब:पाकिस्तान) मे हुआ था। बचपन लाहौर में बीता और शिक्षा भी वंही पर हुई। इन्होने शुरुवात की पंजाबी लेखन से और किशोरावस्था से ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू किया। अमृता जी ११ साल की थी तभी इनकी माताजी का इन्तकाल हो गया, इसलिये घर की जिम्मेदारी भी इनके कंधो पर आ गयी।ये उन विरले साहित्यकारों मे से है जिनका पहला संकलन १६ साल की उमर मे प्रकाशित हुआ। फ़िर आया १९४७ का विभाजन का दौर, इन्होने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत करीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों मे आप इस दर्द को स्वयं महसूस कर सकते हैं।विभाजन के समय इनका परिवार दिल्ली मे आ बसा।अब इन्होने पंजाबी के साथ साथ हिन्दी मे भी लिखना शुरु किया। इनका विवाह १६ साल की उम्र मे ही एक संपादक से हुआ, ये रिशता बचपन मे ही मां बाप ने तय कर दिया था। यह वैवाहिक जीवन भी १९६० मे, तलाक के साथ टूट गया।
अमृता जी को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा गया, जिनमे प्रमुख है १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार।वे पहली महिला थी जिन्हे साहित्य अकादमी अवार्ड मिला और साथ ही साथ वे पहली पंजाबी महिला थी जिन्हे १९६९ मे पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया। १९६१ तक इन्होने आल इन्डिया रेडियो मे काम किया। १९६० मे अपने पति से तलाक के बाद, इनकी रचनाओं मे महिला पात्रों की पीड़ा और वैवाहिक जीवन के कटु अनुभवों का अहसास को महसूस किया जा सकता है।विभाजन की पीड़ा को लेकर इनके उपन्यास पिंजर पर एक फ़िल्म भी बनी थी, जो अच्छी खासी चर्चा मे रही।इन्होने पचास से अधिक पुस्तकें लिखीं और इनकी काफ़ी रचनाये विदेशी भाषाओं मे भी अनुवादित हुई।
इनके पुरस्कारों की तो लम्बी फ़ेहरिस्त है, फ़िर भी मै कोशिश करूंगा कि कुछ का उल्लेख अवश्य करना चाहूँगा।
सम्मान और पुरस्कार
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (१९५६)
- पद्मश्री (१९६९)
- डाक्टर आफ़ लिटरेचर (दिल्ली यूनिवर्सिटी- १९७३)
- डाक्टर आफ़ लिटरेचर (जबलपुर यूनिवर्सिटी- १९७३)
- बल्गारिया वैरोव पुरस्कार(बुल्गारिया – १९७९)
- भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (१९८१)
- डाक्टर आफ़ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतनी- १९८७)
- फ़्रांस सरकार द्वारा सम्मान (१९८७)
प्रमुख कृतियां:
- उपन्यास: पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत,कोरे कागज़, उन्चास दिन, सागर और सीपियां, नागमणि, रंग का पत्ता, दिल्ली की गलियां, तेरहवां सूरज,जिलावतन (१९६८)|
- आत्मकथा: रसीदी टिकिट (१९७६)
- कहानी संग्रह: कहानियां जो कहानियां नहीं हैं, कहानियों के आंगन में
- संस्मरण: कच्चा आंगन, एक थी सारा ।
- कविता संग्रह:
- अमृत लहरें (१९३६)
- जिन्दा जियां (१९३९)
- ट्रेल धोते फूल (१९४२)
- ओ गीता वालियां (१९४२)
- बदलम दी लाली (१९४३)
- लोक पिगर (१९४४)
- पगथर गीत (१९४६)
- पंजाबी दी आवाज(१९५२)
- सुनहरे (१९५५)
- अशोका चेती (१९५७)
- कस्तूरी (१९५७)
- नागमणि (१९६४)
- इक सी अनीता (१९६४)
- चक नाबर छ्त्ती (१९६४)
- उनीझा दिन (१९७९)
- कागज ते कैनवास (१९८१) – ज्ञानपीठ पुरस्कार
अमृता प्रीतम जैसे साहित्याकार रोज रोज पैदा नही होते, उनके जाने से एक युग का अन्त हुआ है। अब वे हमारे बीच नही है लेकिन उनका साहित्य हमेशा हम सब के बीच मे जिन्दा रहेगा और हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।मै अपनी और हिन्दी चिट्ठाकारों की ओर से उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
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