सुबह का समय सिंधु संगम पर शानदार बीता, मेरे जीवन के कुछ यादगार पल। अब बढ़ते हैं लद्दाख के सबसे खूबसूरत मठों में से एक, थिकसे मठ की ओर।




थिकसे मठ (Thiksey Monastery)
लेह की ठंडी हवाओं और ऊँची चोटियों के बीच स्थित यह मठ न केवल आँखों को सुकून देता है, बल्कि मन को भी अनोखी शांति का अनुभव कराता है। 15वीं शताब्दी का यह अद्भुत नमूना लेह से लगभग 15 किलोमीटर दूर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ से पूरे लेह का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। इस मठ की वास्तुकला तिब्बती बौद्ध धर्म की भव्यता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
लद्दाख से मेरा प्यार बहुत पुराना है। कुल मिलाकर चार बार यहाँ आ चुका हूँ, और हर मौसम में लद्दाख और भी सुंदर दिखता है। जब मैं पहली बार यहाँ आया था, तो दूर से ही इस मठ को देखकर मन में एक अलग ही रोमांच हुआ था। इसकी सफेद और लाल दीवारें और पीली छतें एक गहरी शांति का आभास कराती हैं। इसे अक्सर तिब्बत के पोटाला महल से तुलना की जाती है, और सच कहूँ तो, पोटाला महल न सही, लेकिन थिकसे मठ को देखकर ऐसा लगता है मानो उसी के दर्शन कर लिए हों। तिब्बत तो कभी जा नहीं सका, लेकिन यहाँ आकर दिल को वही सुकून मिल जाता है।
मठ के अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले जो आपको मोहपाश में बांधता है, वह है 15 मीटर ऊँची मैत्रेय बुद्ध की प्रतिमा। इस विशाल प्रतिमा के सामने खड़ा होना एक अविस्मरणीय अनुभव है, मानो आप किसी आध्यात्मिक शक्ति के सामने खड़े हों। थिकसे मठ सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, यह एक सांस्कृतिक केंद्र भी है, जहाँ आप रोज़मर्रा के अनुष्ठानों का हिस्सा बन सकते हैं। हर बार जब मैं यहाँ आता हूँ, तो इस जगह की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मुझे कहीं और नहीं मिलती। सबसे अच्छा यह लगता है कि यहाँ हर तरफ आपको सकारात्मक ऊर्जा का एहसास होता है। थिकसे मठ जितना अंदर से खूबसूरत है, उतना ही दूर से भी।
अगर आपको कभी लेह जाने का मौका मिले, तो थिकसे मठ को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें। खासकर अगर आप मठ के वार्षिक महोत्सव (जो शायद नवंबर में होता है) के समय जाएं, तो यह अनुभव और भी यादगार हो जाएगा। उस समय की रौनक और भव्यता आपके दिल में हमेशा के लिए बस जाएगी। मेरे लिए यह मठ सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक अनुभव है, जो हर बार कुछ नया सिखाता है और मुझे बार-बार लद्दाख खींच लाता है।
आज रात जल्दी सोना है क्योंकि कल नुब्रा वैली के लिए निकलना है। जल्द ही एक नए यात्रा अनुभव के साथ फिर मिलेंगे।
चित्र: लद्दाख यात्रा 2012-2015
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